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Showing posts from August, 2020

Nazrana-e-aqeedat Syedna Ali Asghar o Syedna Ali Akbar Alaihissalam

 

Marifat-e-Hussain | Day 3 – Imam Hussain (Alaihissalam) Aur Hifazat-e-Deen

 

Shahadat Shahzada Ali Akbar Alaihissalam

 

शबे आशूरा हज़रत शहरबानो का ख्वाब

मैदाने करबला में शबे आशूरा ( Shab-E-Ashura ) हज़रत शहरबानो ने एक ख्वाब देखा कि एक नूरानी सूरत मुक़द्दस खातून हैं ! जो बडी परेशान नजर आ रही’ हैं ! करबला की ज़मीन साफ़ कर रही हैं ! हज़रत शहरबानो ने इन मुकद्दस खातून से दर्याफ्त फ़रमाया कि आप कौन हैं ? और इस ज़मी को क्यों साफ़ कर रही हैं ? तो उन्होंने जवाब में फ़रमाया कि : बेटी सुन मैं फातिमा हू बिन्त शाहे मशरिकैन सुबह इस मक़तल में लेटेगा मेरा प्यारा हुसैन इसलिये मैं झाड़ती हूं करबला की यह ज़मीं उसके ज़ख़्मो में न चुभ जाये कोई कंकर कहीँ ( तनक़ीहुश-शहादतैन सफ़ा 110 ) सबक – हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत का आपकी वालिदा हज़रत खातूने जन्नत रजियल्लाहु तआला अन्हु को इल्म था ! कब्रे अनवर में तशरीफ़ फरमा होकर भी अपने बेटे के इस इम्तिहान को मुलाहज़ा फरमा रही थीं ! चूंकि मां थी इसलिये अपने लख्ते जिगर के मसाइब (मुसीबतें) से मुतअक्सिर थीं ! फिर जिन जालिमों ने हज़रत इमाम को इस कद्र सताया ! उन्होंने हज़रत फातिमा रजियल्लाहु तआला अन्हु की किस कद्र नाराजगी मोल ले ली  

10 Muharram Imam Hussain Ki Shahadat Ka Din

मैदाने करबला में दसवीं मुहर्रम को जब हज़रत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु के जुमला अहबाब व अकारिब शहीद हो गये ! तो हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु ने खुद पोशाक बदली ! कुबाए मिस्री पहनी ; अमामा रसूले खुदा बांधा सपरे (ढाल) हमजा और जुलफिकारे हैदरे कर्रार (तलवार) लेकर घोडे पर सवार होकर मैदान में जाने का इरादा किया । इतने में हज़रत के साहबजादे हजरत अली औसत यानी हजरत इमाम जैनुल आबिदीन रजियल्लाहु तआला अन्हु जो उस वक्त बीमार थे ! और कमजोरी है की वजह से उठ न सकते थे ! बडी मुश्किल से असा (लाठी) थामे हुए ! कमजोरी की वजह से लडखडाते हुए ! हजरत इमाम’ के पास आकर अर्ज़ करने लगे ! कि अब्बाजाना मेरे होते हुए आप क्यो तशरीफ़ ले जा रहे हैं ? मुझे भी हुक्म दीजिये ! कि मैं भी दर्जाए शहादत हासिल कर लूं ! और हाँ अपने भाईयों से जा मिलू ! इमाम यह गुफ्तगू सुनकर आबदीदा हो हैं गये ! इरशाद फ़रमाया ऐ राहते जाने हुसैन तुम खेमे अहले-बैत में जाकर बैठो ! और शहादत का इरादा न करो ! बेटा रसूले मकबूल सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम की नस्ल तुम्हारे जीने ही से बाकी रहेगी ! क्यामत तक मुन्कता न होगी (ख़त्म न होगी) हज़रत इमाम का यह इरशाद सुन

Hadith Musnad Ahmed 23929

 

Shahadat e Imaam e Aali’maqaam Mola Imaam Hussain (Alaihis Salam) Aur Ahle Sunnat Kutub Se Kuch Rivayaat

  بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ اَللّٰهُمَّ صَلِّ عَلٰى سَيِّدِنَا وَ مَوْلَانَا مُحَمَّدٍ وَّ عَلٰى اٰلَهٖ وَ اَصْحَابِهٖ وَ عَلىٰ سَيِّدِنَا وَ مُرْشِدِنَا وَ مَحْبُوْبِناَ حَضْرَتِ رَاجْشَاهِ السُّونْدَهَوِيِّ وَ بَارِكْ وَ سَلِّمْ۞ Shahadat e Imaam e Aali’maqaam Mola Imaam Hussain (Alaihis Salam) Aur Ahle Sunnat Kutub Se Kuch Rivayaat 1.  Hazrat Umme Salma (Salam un Aleha) Farmati Hai:- Ke Hasan (Alaihis Salam) Aur Hussain (Alaihis Salam) Dono Mere Ghar Me Rasool Allah ﷺ Ke Samne Khel Rahe The Ke Jibreel e Ameen Khidmate Akdas Me Hazir Hue Aur Kha Ke Aye Muhammad ﷺ Beshak Apki Ummat Me Se Ak Jamaat Apke Is Bete Hussain (Alaihis Salam) Ko Apke Bad Qatl Kar Degi, Aur Apko Waha Ki Thori Si Matti Di, Huzoor e Akram ﷺ Ne Us Matti Ko Apne Seene Mubarak Se Chimta Liya Aur “ROOYE” Phir Farmaya:- Aye Umme Salma (Salam un Aleha) Jab Ye Matti Khoon Me Badal Jaye To Jan Lena Mera Ye Beta Qatl Ho Gya, Hazrat Umme Salma (Salam un Aleha) Ne Us Matti Ko Botal Me Rakh Liya Aur Har Ro

Maula Ali Alaihissalam ke Time pe authority

Mai hamesha kehta aaya hun Quran ki Roshani me Sayyeduna Maula Ali Alaihissalam ko Allah Ta’ala ne Waqt, Time pe authority ata farmayi thi. Aap Alaihissalam Waqt me Malik hain! Is baat ka aur ek proof Karbala me bhi milta hai. Jab Maula-e-Kainat Jung-e-Siffin keliyeb tashreef lejarahe they tab raste Karbala ka maidan aaya aur Aapne waha padaw dalne ka Hukm diya aur fir waha ki mitti ko sungha aur Zor se farmaya “Ay Abu Abdullah (Hussain) Sabr karna, Ay Abu Abdullah Sabr karna, Ay Abu Abdullah Sabr karna.” Logo ne pucha Ameerul Momineen kya kya hua, to Maula-e-Kainat ne Aaqa SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ki Peshangoyi bayan farmaye ke kaise yaha Imam Hussain aur Ahle Bayt ko Shaheed kiya jayega fir Aap Alaihissalam ne Ahle Bayt ke Khemon ki jagah, Unki Unto ke baithne ki jagah, sabki nishandahi farma diye. Ab yaha khaas baat ye us waqt Imam Hussain Alaihissalam waha maujud nahi thi. Aur Maula-e-Kainat ne direct Imam Hussain Alaihissalam se farmaya ke Bete Hussain Sabr karna sabr

करबला का ज़िक़्र अपने घरों में क्यो? ताके हमारे मरे हुवे ज़मीर जिंदा हो सके ज़रूर पढ़े आपका ही भला होगा?

करबला का ज़िक़्र अपने घरों में क्यो? ताके हमारे मरे हुवे ज़मीर जिंदा हो सके ज़रूर पढ़े आपका ही भला होगा? करबला महज एक जंग का मैदान ही नही था यहां रिश्तों की भी बुनियाद अल्लाह रब्बुल इज्जत अपनी मख़लूक़ को सीखा रहा था ! सोचिये आज हमारे घरों में रिश्ते जिस तरह से खोखले होते जा रहे है इसकी एक वजह ये भी है के हमे मौलवियों ने हमेशा ज़िक्रे अहलेबैत से दूर रखा है और इसका बहोत बढ़ा खामियाजा आज उम्मत को भुगतना पड़ रहा है ! करबला में क्या हुआ था ? इस सवाल के जवाब में हम जंग के हालात बयान कर देते है लेकिन आज के समाज को जो जरूरत है वो बयान नही किया जाता है ! असल मे करबला का बयान सिर्फ मस्जिदों महफ़िलो और मजलिसों की मोहताज हो गई है जबकि इसकी सबसे ज्यादा जरूरत हमारे घरों में है इसका जवाब नीचे देने जा रहा हु करबला में एक भतीजा अपने चाचा पर कुर्बान हो गया बेटे बाप पर कुरबान हो गए भांजे मामू पर अपनी जाने निछावर कर देते है सौतेले भाईयो ने अपनी गर्दन कटवा दी बहन ने भाई के लिए अपने बच्चे निछावर कर दिए बिना हिचकिचाते हुवे, बाप बेटो के लिए आँसू की बरसात कर देता है छोटे छोटे मासूम अपने बढ़ो के लिए जान दे देते है दोस्त

यज़ीद की मक्कारी

यज़ीद की मक्कारी इमामे सज्जाद की तीसरी शर्त से साबित हो जाती है जब अहलेबैयत का काफला यज़ीद के दरबारमे आया उसके बाद अहलेबैयत और यज़ीद और यज़ीद के बेटो से काफी तवील बहस हुई इसके बाद जब यज़ीद ने देखा के पल्ला अहलेबैयतकी तरफ भारी हो रहा है तो यज़ीद ने ऐलान कर दिया के शहीदों के सर को 3 दिन तक दमिश्क के बाजार में घुमाया जाए और बाद में महल के दरवाजे पर लटका दिए जाएं ताके लोगोके दिलो में मेरी दहसत बैठ जाये कोई मेरी तरफ आवाज़ उठाने की हिम्मत न करे आखिर 3 दिन तक इस मलऊन के हुक्म से बाज़ारो में शोहदा के सरो को घुमाया गया और फिर महल के दरवाज़ों और छतों पर लटका दिए गए (सुम्मामाज़अल्लाह अस्तगफिरूल्लाह) इसके बाद पलित ने इमामे सज्जाद को बुलाया और कहा के देखो मैं आपके साथ भलाई करना चाहता हु बोलो कुछ ख्वाहिश है इमामे सज्जाद ने फ़रमाया के कल जमुआ है और कल खुतबा देने की इजाज़त मुझे दी जाए यज़ीद ने कुबूल किया वो खुतबा दुनिया भर में मशहूर है इमामे सज्जाद ने ऐसा खुतबा दिया के लोग सर पर मिट्टी डालकर रोने लगे जब यज़ीद ने लोगोका रोना देखा तो मोअज़्ज़िन को अज़ान कहने के लिए कहा मोअज़्ज़िन अज़ान देने लगा इमामे सज्जाद ने उसे खुदा और

बीबी सकीना

अहलेबैयत ए पाक जब यज़ीद के दरबार मे पोहचे तो यज़ीद पलित ने इमाम ज़ैनुलआबेदीन रदियल्लाहो तआला अन्हो से गुश्ताखि भरे अंदाज़ में कहने लगा के अगर तेरे वालिद ने बैयत कर ली होती तो ये सब न होता ये सुनकर इमाम ज़ैनुल आबेदीन रदियल्लाहो अन्हो ने क़ुरआने पाक की आयत पढ़ी जिसका मफ़हूम ये था के “जो कुछ हमे मुसीबत पोहचती है वो हमारी तकदीर में।लिखी जाती है” सुनकर यज़ीद खामोश हो गया उस वक़्त इमाम ज़ैनुलआबेदीन रदियल्लाहो अन्हो के पीछे शहज़ादी सकीना इमामे हुसैन अलैहिस्सलाम की लख्ते जिगर खड़ी हुई थी यज़ीद ने बीबी सकीना से पूछा अय बच्ची तू कौन है अपना तआरुफ़ पेश कर बीबी सकीना ने कोई जवाब न दिया पलितने वापस पूछा बीबी ने जवाब न दिया फिर यज़ीद ने सख्त अंदाज़ में कहा क्या तू गूंगी है (सुम्मामाजल्लाह) जवाब क्यों नही देती जनाबे सकीनाने कुछ कहना चाहा लेकिन कह नही पाई हज़रते ज़ैनुल आबेदीन रदियल्लाहो अन्हो ने तडप कर कहा बदबख्त देख नही रहा सकीना के गले मे रस्सी जकड़के रक्खी गई है इस वजह से वो आवाज़ निकाल नही पा रही सकीनाकी रस्सी को ढीला कर ताके तेरा जवाब दे शके यज़ीदने सिपाहिको हुक्म दिया के बच्ची के गलेकी रस्सी को ढीली करदे सिपाही जैसे

Gham e Hussain Alaihissalam mein Kaynat ki Azaadari

 

JANNAT AUR DOZAKH KA MUNAZRA

“Ek roz Jannat aur Dozakh ka muqaabla hua, aapas me munazra hua. Jannat ne kaha: Dozakh mai tujse bahot zyada behtar hun. Dozakh ne kaha: Nahi! mai tumnse behtar hun. Jannat ne pucha tu kaise behtar hogayi? Dozakh ne kaha: Kul bade bade jo badshah hain sab mere paas hain! Dozakh ne kaha ye saare jawabera (jabran hukumat pe kabza karne waale), sab aamir aur naam liya saare namrud, firoun mere paas hain, isliye mai aala hun! Dozakh ki ye baat sunkar Jannat chup hogayi. Allah Pak ne Jannat ki taraf Wahi bheji, Paigam bheja Farishte ke zariye: Ay Jannat chup na kar khamosh na ho! Lajawab na ho is dozakh ko jawab de ke tere paas badbakht jawabera hain, wo sultan o badshah hain jo badbakht hain. Saare insani tarikh ke jhoote badshah aur salateen aur jaabir aur aamir ek taraf, unse to teri badbakhti he badhegi. Mere Khushbakhti aur Sa’aadat, Husn o Jamaal, Azmato Kamaal aur Buzurgi aur Bartari keliye, Khuda ne Kaha Jannat isko kehde Sirf HASAN-O-HUSSAIN 2 he kaafi hain!! To Jannat Hasan aur H

Hazrat Ali Akbar Alaihissalam Ki Shahadat

मैदाने करबला में जब हज़रत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु के जुमला अहबाब व अक़रबा जामें शहादत नोश फरमा चुकें ! तो आपके साथ सिर्फ आपके तीन साहबजादों के कोई न बचा ! यह तीन साहबजादे हज़रत अली अकबर ( Hazrat Ali Akbar ), हज़रत अली असग़र (Hazrat Ali Asghar) और इमाम जैनुल आबिदीन ( Hazrat Jenul Abedin) रजियल्लाहु तआला अन्हुम थे ! हजरत इमाम जैनुल आबिदीन तो बीमार थे ! और हजरत अली असग़र रजियल्लाहु तआला अन्हु अभी शीरख़्वार (दूध पीते बच्चे ) ही थे ! हज़रत अली अकबर ( Hazrat Ali Akbar ) की उम्र शरीफ़ 18 बरस की थी ! हज़रत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु ने जब देखा कि अब सिवाए मेरे तीन बच्चों के और कोई बाकी न रहा ! तो आपने खुद मेदान में जाने का फैसला कर लिया ! और सवारी मंगवाई ! हथियार बदन पर आरास्ता फ़रमाये ! और रुखसत के वास्ते खेमे के अंदर तशरीफ़ लाये ! और सब को सब्र की तलक़ीन की ! हज़रत अली अकबर ( Hazrat Ali Akbar ) रजियल्लाहु तआला अन्हु यह मंजर देखकर इमाम के क़दमों पर गिरे ! और अर्ज करने लगे अब्बाजान ! खुदा वह दिन न दिखाये ! जबकि आप मेरे सामने शर्बते शहादत नोश फरमायें ! आप मेरे होते हुए मैदान में क्यों तशरीफ़ ले

Hazrat Abbas Alamdar Alaihissalam Ki Shahadat Ka Waqiya

मैदाने करबला में हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु के दोस्त अहबाब, भतीजे ओंर भांजे शहीद हो गये तो हज़रत अब्बास Abbas Alamdar रजियल्लाहु तआला अन्हु खिदमते इमाम में हाजिर हुए और कहा कि अब मुझे मेदान में जाने की इजाज़त दीजिये ! अब तो हद हो गयी है । इन जालिमों ने हमारे सब अजीज शहीद कर दिये ! और बाकी जो हैं प्यास के मारे निढाल हो रहे हैं ! मुझसे छोटे बच्चों की प्यास देखी नहीं जाती ! में पानी लेने फुरात पर जा रहा हूँ ! हजरत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु ने अपने भाई को चंद बातें तालीम फरमा कर रुखसत फ़रमाया ! आप मशक लेकर फुरात की जानिब रवाना हुए ! फुरात पर चार हजार फौजियों का घेरा था ! हज़रत अब्बास ( Abbas Alamdar ) ऩे जो फुरात पर क़दम रखा तो सबने आपको घेर लिया ! आपने उनसे मुखातिब होकर फ़रमाया तुम लोग मुसलमान हो या काफिर ? बहे बोले हम मुसलमान हैं ! आपने फ़रमाया: मुसलमानों में यह कब रखा है ! कि चरिन्द परिन्द सब पानी पियें ! और फर्जन्दे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम प्यासे तड़पें ! तुम लोग क़यामत की प्यास से नहीं डरते ? जालिमों ! जिगर गोशा-ए-रसूल हुसेन प्यासा है ! उसके बच्चे प्यासे हैं ! कुछ ख्याल करो

हजरत कासिम रजियल्लाहु तआला अन्हु और अजरक पहलवान की जंग

  मैदाने करबला में तब हज़रत इमाम हुसैेन रजियल्लाहु तआला अन्हु के अहबाब शहीद हो चुके ! और आपके भतीजे और भांजे भी जामें शहादत नोश फ़रमा चुके ! तो फिर हजरत इमाम हसन रजियल्लाहु तआला अन्हु के साहबजादे हजरत कासिम ( Hazrat Qasim) रजियल्लाहु तआला अन्हु मैदान में तशरीफ़ लाये ! आपको देखकर यजीदी लशकर में खलबली मच गयी ! यजीदी लशकर में एक शख्स अज़रक पहलवान भी था । उसे मिस्र व शाम वाले एक हजार जवानों की ताकत का मालिक समझते थे ! यह शख्स यजीद से दो हजार दीनार सालाना पाता था ! करबला में अपने चार ताकतवर बेटों के साथ मौजूद था ! जब हज़रत इमाम कासिम ( Hazrat Qasim) रजियल्लाहु तआला अन्हु मैदान में आये तो मुकाबले में आने के लिये कोई तैयार न हुआ ! इब्जे सअद ने अज़रक से कहा कि कासिम के मुकाबले मे तुम जाओ ! अज़रक ने इसमें अपनी तौहीन समझी और मजबूरन अपने बडे बेटे को यह कहकर भेज दिया कि मेंरे जाने की क्या ज़रूरत है ! मेरा बेटा अभी कासिम का सर लेकर आता है ! Hazrat Qasim Or Ajrak Pahalwan Ki Jang चुनांचे उसका बेटा हज़रत कासिम के मुकाबले में आया ! हजरत कासिम ( Hazrat Qasim) के हाथों बडी जिल्लत के साथ मारा गया ! उसकी तलवार पर

दो शेर Aun aur Muammad ki shahadat

हजरत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु के जब सब यार व वफादार रफीक व जां निसार शहीद हो गये ! तो हजरत की सगी बहन हज़रत जैनब रजियल्लाहु तआला अन्हु के दो साहबजादे हजरत औन और हज़रत मुहम्मद मां और मामू की इजाज़त लेकर घोडों को दौडाते हुए नार-ए-तकबीर बुलंद करते हुए दुशमनों की तऱफ़ बढे ! जंगे गाह में घोडों को उडाते हुए आये शान अपनी सवारी की दिखाते हुए आये नेज़ो को अपने दिलेराना हिलाते हुए आये इनां सूए अशरार बनाते हुए आये लरजा था शुजाओं को दिलेरों की नज़र से तकते थे सफ़ फौज को शेरों की नज़र से लशकर में यह गुल था कि वह जांबाज पुकारे लड़ना हो जिसे सामने आ जाये हमारे हम वह हैं कि जब होते हैं मेंदां में उतारे रुस्तम को भगा देते हैं तलवार के मारे है क़हरे खुदाए दो जहा’ हर्ब हमारी रुकती नहीं दुश्मन से कभी जर्ब हमारी ये रिज़्ज़ पढी दोनों ने जू लां किये घोडे चिल्ले में उधर तीर को कमांदारों ने जोडे गुल था कि खबरदार कोई मुंह न मोडे ये दोनों बहादुर हैं तो हम भी नहीं थोडे यह मार के तलवार गिरा देते हैं उनको या नेजों की नोकों पे उठा लेते हैँ उनको यह दोनों शेर दुशमन की फौज में घुस गये ! और कई यजीदियों को जहन्नम में पहुंचा दिया !

Taziyadari Jaiz Hai ??

  Taziyadaari Kya Taziyadari Jaiz Hai ?? Quran Aur Hadees Mein Koi Bhi Aisi Misaal Nai Hai Jo Taziya Shareef Ke Khilaf Jaye Balki Taziyadari Ke Haq Mein Misaal Maujood Hein. “Beshaq Safa Aur Marwa Allah Ki Nishaniyon Mein Se Hein” ( Para-02) Is Aayat-e-Kareema Main Allah Ta’ala Ne Safa Aur Marwa Do Pahadiyo Ko Apni Nishani Qarar Diya Hai Is liye Ki Ek Waliyah Ke Qadamo Se Inhein Nisbat Ho Gayi Hai Aur Allah Ta’ala Ki Nishani Ho Jati Hai, Azmat Aur Nisbat Waali Cheez Ki Tazim Wa Tauqeer Deen Mein Shaamil Hai. Imam-e-Hussainع Se Nisbat Ki Wajah Se Taziya Shareef Banaya Jata Hai Upar Humne Jana Ki Safa Aur Marwa Sirf Do Pahadiya Thi Lekin Ek Waliyah Ke Qadam Se In Pahadiyon Ko Nisbat Ho Gai Hai, Toh Ye Allah Ta’ala Ki Nishani Ban Gayi Azmat Wali Pahadiyan Ho Gai, Ussi Tarah Taziya Shareef Ko Imam Hussainع Ki Taraf Nisbat Di Jaati Hai Isliye Taziya Shareef Laaik-e-Tazeem Ban Jata Hai Aaj Kuch Lailm Log Ye Kehte Hein Ki Shiya Bhi Taziyadari Karte Hai Isliye Taziyadari Nahi Karna Chahiye Unl