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Showing posts from September, 2020

Al Batool AlaihisSalam: Noor e Muhammad (Sallallahu alaihi wa Sallam) ke Noori Libas

 

Yateem Ki Kafalat

 

Hadith e Saqlain with all references

 

वो वली कैसा वली है जो ग़मे हुसैन में आंसू न बहाए

  वो वली कैसा वली है जो ग़मे हुसैन में आंसू न बहाए हज़रत सैय्यदना मख़्दूम अशरफ़ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह के पीरो मुर्शिद हज़रत सैय्यदना मख़्दूम अलाउद्दीन पांडवी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं ” वो वली कैसा वली है जो मोहर्रम में ग़मे हुसैन (अलैहिस्सलाम) में आंसू न बहाए “ आप ख़ुद 10 मुहर्रम तक न नया लिबास पहेनते न ख़ुशी मनाते  लताइफ़ ए अशरफ़ी 2/246,247

हराम माल की नहुसत

  हिकायत –   हज़रत इब्राहीम बिन अदहम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु एक रात बैतुल मुक़द्दस में आराम फरमा रहे थे आप तन्हा ही थे और आस पास कोई न था,रात का जब काफी हिस्सा गुज़र चुका तो अचानक मस्जिद का दरवाज़ा खुला और बहुत सारे लोग अंदर दाखिल हुए और नवाफिल वगैरह पढ़कर एक कोने में बैठ गए,उनमें से एक शख्स बोला कि आज रात कोई यहां हम में से नहीं है तो एक ज़ईफ शख़्स मुस्कुराये और फरमाया कि हां आज इस मस्जिद में इब्राहीम अदहम भी मौजूद हैं जो पिछली 40 रातो से इबादत में ग़र्क़ है मगर उनको वो लुत्फ हासिल नहीं हो रहा,हज़रत इब्राहीम बिन अदहम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने जब ये बात सुनी तो फौरन उठकर उनके पास पहुंचे और कहा कि आप सच फरमाते हैं बिल्कुल ऐसा ही है पर ऐसा क्यों हो रहा है आप बतायें,तो वो बुज़ुर्ग फरमाते हैं कि बसरा में एक दिन तुमने कुछ खजूरें खरीदी थी उनमें से एक खजूर को तुमने अपनी समझ कर उठा लिया था जो तुम्हारी नहीं थी बस उसी की नहूसत है कि तुम्हारी इबादत से लज़्ज़त खत्म हो गयी है,जब आपने ये सुना तो फौरन तौबा की और बसरा को रवाना हुए और उस शख्स से माफी मांगी जिसे आपने खजूरें खरीदी थी  तज़किरातुल औलिया,सफह 125 ⓩ ये बीमारी

Hadith Fazail e Maula Ali Alaihissalam 1

  Hazrat Ali كَرَّمَاللهُ تَعَالىٰ وَجْهَهُ الْكَرِيْم Ka Huzoor Nabi-E-Akram صَلَّى الله تَعَالىٰ عَلَيْهِ وَالِه وَسَلَّم Kee Bargah Me Qurb Aur Maqaam Wa Martabe Ka Bayan ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَالَمِينَ وَالصَّلوٰةُ والسَّﻻَمُ عَلىٰ سَيِدِ الْمُرْ سَلِيْنَ اَمّاَ بَعْدُ فَاَعُوْذُ بِاللهِ مِنَ الشَّيْطٰنِ الرَّجِيْم بِسْمِ اللَّهِ ٱلرَّحْمـٰنِ ٱلرَّحِيم 07/130 “Hazrat Sa’d Bin Abi Waqqas RadiyAllahu Ta’ala Anhu Bayan Karte Hain Ki Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Ne Ghazwa-E-Tabook Ke Mauqa Par Hazrat Ali KarramAllahu Ta’ala Waj’hah-ul-Karim Ko Madinah Me Chhod Diya, Hazrat Ali KarramAllahu Ta’ala Waj’hah-ul-Karim Ne Arz Kiya : Ya RasoolAllah ﷺ! Kya Aap Mujhe Aurton Aur Bachchon Me Pichhe Chhod Kar Jaa Rahe Hain ? Aap SallAllahu Ta’ala Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Ne Farmaya : Kya Tum Is Baat Par Raazi Nahin Ki Mere Saath Tumhaari Wohi Nisbat Ho Jo Hazrat Haroon عَلَيْهِ السَّلَام Kee Hazrat Moosa عَلَيْهِ السَّلَام Se Thi AlBatta Mere Baa’d Koi N

Hazrat Ali كَرَّمَاللهُ تَعَالىٰ وَجْهَهُ الْكَرِيْم Kee Qubool-E-Islam Aur Namaz Padhne Me Awwaliyyat Ka Bayan Hadith

  03/01 : Hazrat Ali كَرَّمَاللهُ تَعَالىٰ وَجْهَهُ الْكَرِيْم Kee Qubool-E-Islam Aur Namaz Padhne Me Awwaliyyat Ka Bayan 06/129 “Hazrat Salman Farsi RadiyAllahu Ta’ala Anhu Se Riwayat Hai Woh Bayan Karte Hain Ki Ummat Me Se Sab Se Pehle Hawz-E-Kawsar Par Huzoor Nabi-E-Akram SallAllahu Ta’ala Alayhi Wa Aalihi Wa Sallam Kee Khidmat Me Haazir Hone Waale Islam Laane Me Sab Se Awwal Hazrat Ali Bin Abi Talib KarramAllahu Ta’ala Waj’hah-ul-Karim Hain.” Is Hadith Ko Imam Ibn Abi Shaybah Aur Imam Tabarani Ne Riwayat Kiya Hai. – [Ibn Abi Shaybah Fi Al-Musannaf, 07/267, Raqam-35954, Tabarani Fi Al-Mu’jam-ul-Kabir, 06/265, Raqam-6174, Shaybani Fi Al-Ahad Wa’l-Mathani, 01/149, Raqam-179, Ibn Sa’d Fi At-Tabaqat-ul-Kubra, 02/31, Haythami Fi Majma’-uz-Zawa’id, 09/102, Ghayat-ul-Ijabah Fi Manaqib-il-Qarabah,/118, Raqam-129.]

कर्बला के वह आंकड़े जो शायद आप को न पता हों…

  यज़ीद की बैअत से इन्कार से लेकर आशूर तक इमाम हुसैन का आंदोलन 175 दिनों तक चला। 1) – 12 दिन मदीने में, 2) – 4 महीने 10 दिन मक्के में, 3) – 23 दिन मक्के और कर्बला के रास्ते में 4) – और 8 दिन कर्बला में।  कूफे से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को 12000 खत लिखे गये थे।  कूफे में इमाम हुसैन के दूत मुस्लिम बिन अक़ील की बैअत करने वालों की तादाद 18000 या 25000 या 40000 बतायी गयी है।  अबू तालिब की नस्ल से कर्बला में शहीद होने वालों की संख्या 30 है, 17 का नाम “ज़ेयारत नाहिया” में आया है 13 का नहीं।  इमाम हुसैन की मदद की वजह से शहीद होने वाले कूफियों की संख्या 138 थी जिनमें से 15 ग़ुलाम थे।  शहादत के वक्त इमाम हुसैन अलैहिस्सलमा की उम्र 57 साल थी।  शहादत के बाद उनके बदन पर भाले के 33 घाव और तलवार के 34 घाव थे। तीरों की संख्या अनगिनत बताया गया है कि शहादत तक इमाम हुसैन के बदन पर कुल 1900 तक घाव थे।  इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की लाश पर दस घुड़सवारों ने घोड़े दौड़ाए थे।  कूफे से इमाम हुसैन के खिलाफ जंग के लिए कर्बला जाने वाले सिपाहियों की तादाद 33 हज़ार थी। कुछ लोगों ने संख्या और अधिक बतायी है।  दसवीं मुहर्रम

Farmane Maula Ali Alaihissalam

  Imam Ali (as) Momin ke Momin par 6 Haq hain: 1) Jab uske paas pahu’nche to Salaam kare, 2) Jab wo Beemar ho jaaye to uski ayaadat kare, 3) Jab wo chhi’nke (sneezes) to uske liye Dua kare, 4) Jab wo mar jaaye to uski tehzeez aur takfeen mein shareek ho, 5) Jab wo ziyafat (daawat) mein bulaaye to qubool kare, 6) Jo cheez apne liye chaahta hai wohi uske liye bhi pasand kare aur jo apne liye makrooh jaanta hai wo uske liye bhi bura jaane. Tehzeeb ul Islam, p280

Nara e Haideri ki Haqeekat

  It is Ijma of Sahaba and the Ummah that Imam Ali is the most courageous and bravest amongst the followers of Mohammed Mustafa (Sallal Lahu Alaihi Wa Sallam). Just study the seerah and you will see Badr, Khandaq, Khayber, Hunain etc. For instance, in Badr, 72 kuffar were killed and 37 were killed by Imam Ali (Alaihi Asalam). The origins of the Naara are from the battlefield and it is recited in praise of the one on whose hand Allah Taalah granted victory to the Muslims after others had failed. When Hazrat Ali (Alaihi Asalam) once defeated many foes by himself, and the Sahaba’s (Radi Allah Anum Ajma’een) said, Nara e Haideri – Ya Ali (Alaihi Asalam). Sayidna Ali (Aliahi Asalaam) is known as Haider – Lion Ya Ali (Aliahi Asalaam) is the reply for Naaray Haideri. Naaray Haideri is the call for Sayidna Ali (Aliahi Asalaam) since he is Asadullah. Sayidna Ali (Aliahi Asalaam) is also Mushkil Kusha, thus we say Ya Ali to call upon Sayidna Ali (Aliahi Asalaam) as a waseela (intermediately or i

Hadith काबा के जियारत की फजिलत

  काबा के जियारत की फजिलत   हजरत अबू जर रदियल्लाहो अन्हो ब्यान करते है कि हुजूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलयहे वसल्लम ने ईर्शाद फरमाया:- ”हजरत दाउद अलहिसल्लाम ने अर्ज किया:’या अल्लाह!जब तेरे बंदे तेरे घर (का’बा शरीफ) की जियारत के लिए आयेंगे तो तुं उन्हें क्या अता फरमायेगा? तो अल्लाह तआला ने फरमाया:’हर जियारत करनेवाले का उस पर हक है जिस की वोह जियारत करने जाये मेरे उन बंदो का मुझ पर यह हक है कि में उन्हें दुनिया मे आफियत दुंगा ओर जब मुझ से मिलेंगे तो उनके गुनाह को माफ कर दुंगा।” (अल मुजमल ओसात लिल तिबरानी, हदीस नं.6037)