काबा के जियारत की फजिलत
हजरत अबू जर रदियल्लाहो अन्हो ब्यान करते है कि हुजूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलयहे वसल्लम ने ईर्शाद फरमाया:-
”हजरत दाउद अलहिसल्लाम ने अर्ज किया:’या अल्लाह!जब तेरे बंदे तेरे घर (का’बा शरीफ) की जियारत के लिए आयेंगे तो तुं उन्हें क्या अता फरमायेगा?
तो अल्लाह तआला ने फरमाया:’हर जियारत करनेवाले का उस पर हक है जिस की वोह जियारत करने जाये मेरे उन बंदो का मुझ पर यह हक है कि में उन्हें दुनिया मे आफियत दुंगा ओर जब मुझ से मिलेंगे तो उनके गुनाह को माफ कर दुंगा।”
(अल मुजमल ओसात लिल तिबरानी, हदीस नं.6037)
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