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Showing posts from May, 2019

अज्वा तमाम_खजूरों_की_सरदार

जब बिलाल की खजूर कोई खरीदता नहीं था तब अल्लाह के रसूल ने यह फरमाया—- शहर का माहौल एक सा था, के एक आदमी ने एक बाग़ के झाड़ झंकार से खजूरें चुनें।गोया ऐसी खुजूर थी जो सिर्फ शहर के इसी बाग़ में लगी थी, लेकिन लोगों को इस खुजूर से कोई रग़बत ना थी, इसलिए कि उस खुजूर में वो नरमी नहीं थी, ना उसका वो ज़ायक़ा था, रंग भी इंतिहाई गहरा और दाना भी बहुत छोटा था। वो ग़रीब आदमी जिसकी नाक मोटी, आंखें छोटी, रंगत स्याह, चलता तो टांगे अटक अटक जातीं, बोलता तो ज़बान में लड़खड़ाहट होती, ग़ुरबत से ग़ुरबत की नस्ली ग़ुलाम रहा था, खुजूरें झोली में डाले शहर में फरोख्त करने की कोशिश कर रहा था।इस बाग़ का ये आखरी फल था, जो इस आदमी की झोली में था लेकिन शहर में कोई इन खुजूरों का तलबगार नहीं था, यहां तक के एक शख़्स ने यूँ आवाज़ लगाई, ऐ बिलाल ये खुजूर तो तुझ जैसी ही काली है और खुश्क भी, वो ग़रीब दिल का आबगीना ठेस खा गया, आँखों से आंसू रवां हो गए। बीलाल हब्शी खुजूर समेटकर बैठे रहे, की ऐसे में वहां से उसका गुज़र हुआ, जो टूटे दिलों का सहारा है, जिसने मिस्कीनों को इज़्ज़त बख्शी, वो जिसका नाम ग़मज़दा दिलों की तस्कीन है, वो जो

अस्हाबे_फ़ील ‘हाथी वालों का’ क़िस्सा

हुज़ूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैदाईश से 50 या 55 दिन पहले यह वाक़िआ हुआ कि नजाशी हब्शा (इथोपिया के बादशाह) की तरफ़ से यमन देश का गवर्नर (हाकिम) अब्रहा अश्रम था, जो ईसाई मज़हब का मानने वाला था…। उसने देखा कि अरब देश के सभी आदमी मक्का आकर ख़ाना काबा का तवाफ़ (एक इबादत, जो काबा शरीफ़ के चक्कर लगाकर अदा होती है) करते हैं, तो उसने चाहा कि ईसाई मज़हब के नाम पर एक बहुत बड़ी व सुन्दर इमारत (चर्च) बना दूँ, ताक़ि अरब के लोग ख़ाना काबा को छोड़कर उस ख़ूबसूरत बनावटी काबे का आकर तवाफ़ करने लगें…। चुनाँचे यमन देश की राजधानी ‘सनआ’ में उसने एक बहुत आलीशान चर्च (गिरजा) बनाया…। अरब देश में जब यह ख़बर मशहूर हुई तो क़बीला किनाना का कोई आदमी वहाँ आया और उसमें पाख़ाना करके भाग आया…। बाज़ लोग कहते हैं कि अरब के नौजवानों ने उसके क़रीब आग जला रखी थी, हवा से उड़कर आग चर्च में लग गई और वह इमारत जलकर ढेर हो गई…। अब्रहा को जब यह ख़बर मिली तो उसने ग़ुस्से में आकर क़सम खाई कि ख़ाना-ए-काबा (बैतुल्लाह) को ढहा कर ही दम लूँगा…। इसी इरादे से मक्का पर 60 हज़ार की फ़ौज लेकर हमले के इरादे से चल दिया…। रास्ते में

ज़क़ात किसको देनी चाहिये?? Who deserve your “Zakaat”???

रमज़ान का आखिरी अशरा (हिस्सा) चल रहा है इस अशरे में सब मुसलमान अपनी साल भर की कमाई की ज़कात निकालते है। ज़कात क्या है??? कुरआन मजीद में अल्लाह ने फ़र्माया है :- “ज़कात तुम्हारी कमाई में गरीबों और मिस्कीनों का हक है।” ज़कात कितनी निकालनी चाहिये ये काफ़ी बडा मुद्दा है इस मसले पर बहुत सारे इख्तिलाफ़ है, कोई इन्सान कुछ कहता है और कुछ कहता है| इस मसले पर हम विस्तार से बाद में बात करेंगे। ज़कात निकालने के बाद सबसे बडा जो मसला आता है वो है कि ज़कात किसको दी जाये??? ज़कात देते वक्त इस चीज़ का ख्याल रखें की ज़कात उसको ही मिलनी चाहिये जिसको उसकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत हो…वो शख्स जिसकी आमदनी कम हो और उसका खर्चा ज़्यादा हो। अल्लाह ने इसके लिये कुछ पैमाने और औहदे तय किये है जिसके हिसाब से आपको अपनी ज़कात देनी चाहिये। इनके अलावा और जगहें भी बतायी गयी है जहां आप ज़कात के पैसे का इस्तेमाल कर सकते हैं। सबसे पहले ज़कात का हकदार है :- “फ़कीर” फ़कीर कौन है?? फ़कीर वो शख्स है जिसकी आमदनी 10,000/- रुपये सालाना है और उसका खर्च 21,000/- रुपये सालाना है यानि वो शख्स जिसकी आमदनी अपने कुल खर्च से आधी से भी कम है तो

फ़ितरा” क्या है?? “फ़ितरा” कब देना चाहिये??? What Is Fitra?? When You Can Give Fitra??

#फ़ितरा क्या है?? फ़ितरा रमज़ान के रोज़े पुरे होने के बाद यानि ईद का चांद दिखने के बाद दिया जाता है। ये एक तरह का सदका (दान) है जो हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है चाहे वो बच्चा हो, बुढा हो, औरत हो या लडकी हो। हर मुसलमान को हर हाल में फ़ितरा देना चाहिये। #फ़ितरा कब निकालना चाहिये??? फ़ितरा ईद का चांद दिखने के बाद निकालना चाहिये। इसको निकालने का सबसे अव्वल वक्त जो हदीसों में बताया है वो ये है की “फ़ितरा ईद का चांद दिखने से तुलुहे-फ़ज़र (यानि फ़जर का वक्त खत्म होने) तक है।” इसके बाद दिया गया फ़ितरा आम सदके के तौर पर देखा जाता है। तो सबसे बेहतर है की आप फ़ितरा ईद का चांद दिखने के बाद दे देना चाहिये यही सबसे अव्वल है। #फ़ितरा कितना और क्या देना चाहिये??? फ़ितरा कितना देना चाहिये?? ह्दीसों इसकी मात्रा के ज़िक्र में एक अल्फ़ाज़ “स” का इस्तेमाल किया गया है। असल में ये “स” लोहे के एक बर्तन को कहा जाता था जिसमें पहले अरब की औरतें खाना बनाते वक्त चावल या गेंहू नापा करती थी। आज भी हिन्दुस्तान के कुछ गावों में अब भी इसका इस्तेमाल होता है इसे हिन्दुस्तान में “साई” कहा जाता है। पहले इसका नाप लगभग “ढाई किलो” होता था अब वो सिर्फ़

अमरीका क्यों मानता है रुमी का लोहा

मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी (३० सितम्बर, १२०७) फारसी साहित्य के महत्वपूर्ण लेखक थे जिन्होंने मसनवी में महत्वपूर्ण योगदान किया। इन्होंने सूफ़ी परंपरा में नर्तक साधुओ (गिर्दानी दरवेशों) की परंपरा का संवर्धन किया। रूमी अफ़ग़ानिस्तान के मूल निवासी थे पर मध्य तुर्की के सल्जूक दरबार में इन्होंने अपना जीवन बिताया और कई महत्वपूर्ण रचनाएँ रचीं। कोन्या (मध्य तुर्की) में ही इनका देहांत हुआ जिसके बाद आपकी कब्र एक मज़ार का रूप लेती गई जहाँ आपकी याद में सालाना आयोजन सैकड़ों सालों से होते आते रहे हैं। रूमी के जीवन में शम्स तबरीज़ी का महत्वपूर्ण स्थान है जिनसे मिलने के बाद इनकी शायरी में मस्ताना रंग भर आया था। इनकी रचनाओं के एक संग्रह (दीवान) को दीवान-ए-शम्स कहते हैं। इनका जन्म फारस देश के प्रसिद्ध नगर बाल्ख़ में सन् 604 हिजरी में हुआ था। रूमी के पिता शेख बहाउद्दीन अपने समय के अद्वितीय पंडित थे जिनके उपदेश सुनने और फतवे लेने फारस के बड़े-बड़े अमीर और विद्वान् आया करते थे। एक बार किसी मामले में सम्राट् से मतभेद होने के कारण उन्होंने बलख नगर छोड़ दिया। तीन सौ विद्वान मुरीदों के साथ वे बलख से रवाना हु

JERUSALEM AND UMAR IBN AL-KHATTAB (RA)

Jerusalem is a city holy to the three largest monotheistic faiths – Islam, Judaism, and Christianity. Because of its history that spans thousands of years, it goes by many names: Jerusalem, al-Quds, Yerushaláyim, Aelia, and more, all reflecting its diverse heritage. It is a city that numerous Muslim prophets called home, from Sulayman and Dawood to Isa (Jesus), may Allah be pleased with them. During the Prophet Muhammad ﷺ’s life, he made a miraculous journey in one night from Makkah to Jerusalem and then from Jerusalem to Heaven – the Isra’ and Mi’raj. During his life, however, Jerusalem never came under Muslim political control. That would change during the caliphate of Umar ibn al-Khattab, the second caliph of Islam. Into Syria During Muhammad ﷺ’s life, the Byzantine Empire made clear its desire to eliminate the new Muslim religion growing on its southern borders. The Expedition of Tabuk thus commenced in October 630, with Muhammad ﷺleading an army of 30,000 people to the border with

THE MIRACLES OF THE NOBLE PROPHET MUHAMMAD (PBUH)

There are many miracles which the Prophet (peace and blessings of Allah be upon) performed related in the Sunnah, or conglomeration of the sayings, deeds, approvals, and descriptions of the Prophet (peace and blessings of Allah be upon). The Tree Trunk In Medina Muhammad (peace and blessings of Allah be upon)  used to deliver sermons leaning on a tree stump.  When the number of worshippers increased, someone suggested a pulpit be built so he can use it to deliver the sermon.  When the pulpit was built, he abandoned the tree trunk.  Abdullah ibn Umar (may Allah be pleased with him), one of the companions, gave an eye-witness testimony of what happened. The trunk was heard weeping, the Prophet of Mercy went towards it and comforted it with his hand.  [Saheeh Al-Bukhari] The event is also confirmed through eye-witness testimony transmitted through the ages with an unbroken chain of reliable scholars (hadith mutawatir). The Flowing of Water On more than one occasion when people were in dir

HOW ISLAMIC INVENTORS CHANGED THE WORLD

From coffee to cheques and the three-course meal, the Muslim world has given us many innovations that we in the West take for granted. Here are 20 of their most influential innovations: (1)  The story goes that an Arab named Khalid was tending his goats in the Kaffa region of southern Ethiopia, when he noticed his animals became livelier after eating a certain berry. He boiled the berries to make the first coffee. Certainly the first record of the drink is of beans exported from Ethiopia to Yemen where Sufis drank it to stay awake all night to pray on special occasions. By the late 15th century it had arrived in Makkah and Turkey from where it made its way to Venice in 1645. It was brought to England in 1650 by a Turk named Pasqua Rosee who opened the first coffee house in Lombard Street in the City of London. The Arabic “qahwa”  became the Turkish  “kahve”  then the Italian  “caffé”  and then English  “coffee”. (2)  The ancient Greeks thought our eyes emitted rays, like a laser, which

What is Sadaqah al-Fitr (Fitrah)?

https://youtu.be/2uDHwzbiOaA         What is sadaqah al-fitr? Sadaqah al-fitr is a sadaqah that is wajib to be given by every Muslim who is alive at the end of the month of Ramadan and who has at least nisab amount of money or goods apart from his fundamental needs. It is also called fitrah. Sadaqah al-fitr (fitrah) means sadaqah given by man as gratitude in order to gain rewards. Fitrah is a means of the acceptance of fasting by Allah and salvation from the agonies of death and torture in the grave. It helps the poor to meet their needs and be happy on the day of eid. From this point of view, fitrah is a humane charity and civilized duty. For whom is it wajib to pay fitrah? The necessary conditions for paying fitrah are as follows: to be a Muslim, to be a free person (not a slave), to have nisab amount of money or goods apart from his fundamental needs. It is not necessary to be sane and to have reached the age of puberty for fitrah. The fitrahs of the rich mentally ill people and chi

भारतीय इतिहास में बादशाह औरंगजे़ब को बदनाम करने के लिए सब से ज़यादा दुष्प्रचार किया हैं

“जो है नाम वाला, वही तो बदनाम है” -ये अल्फाज़ मुग़ल बादशाह औरंगजेब के ऊपर सबसे ज्यादा फिट बैठते हैं. जिस शख्स की कभी ‘तहज्जुद’ की नमाज़ क़ज़ा नहीं होती थी. जिसके शासनकाल में हिन्दू मनसबदारों की संख्या सभी मुग़ल बादशाहों की तुलना में सबसे ज्यादा थी. जिसने कट्टर मुसलमान होते हुए भी कई मंदिरों के लिए दान और जागीरें दीं. जिसने शिवाजी को क़ैद में रखने के बावजूद मौत के घाट नहीं उतारा, जबकि ऐसा करना उनके लिए मुश्किल नहीं था. जो खुद को हुकूमत के खजाने का सिर्फ ‘चौकीदार ‘समझता था (मगर वह आजकल के चौकीदारों की तरह नहीं था) और अपनी जीविकोपार्जन के लिए वह टोपियाँ सिलता और कुरान शरीफ के अनुवाद करता था. औरंगजेब ऐसा बादशाह है जिसके साथ इतिहास और तास्सुबी इतिहासकारों ने कभी न्याय नहीं किया. एक ऐसा बादशाह, जिसे भारतीय इतिहास में सब से ज्यादा बदनाम किया गया है, मगर जो अपने खानदान के तमाम बादशाहों में सबसे ज्यादा मुत्तकी, परहेज़गार, इंसाफपसंद, खुदा से डरने वाला, हलाल रिजक खाने वाला और तहज्जुदगूज़ार बन्दा था. उस बादशाह का नाम है – हजरत औरंगजेब (रहमतुल्लाह अलैह), जिनका मजारे पाक औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में है. क्या यह

बहलोल लोदी

शासक ========== लोदी वंश में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण शासक हुए- – बहलोल लोदी (1451-1489 ई.) – सिकन्दर शाह लोदी (1489-1517 ई.) – इब्राहीम लोदी (1517-1526 ई.) – इब्राहीम लोदी 1526 ई. में पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर के हाथों मारा गया और उसी के साथ ही लोदी वंश भी समाप्त हो गया। बहलोल लोदी (1451-1489 ई.) =============== पूरा नाम – बहलोल शाह गाजी अन्य नाम- बहलोल लोदी जन्म भूमि – शाहूखेल, गिलजाई कबीले, अफ़ग़ानिस्तान मृत्यु तिथि -1489 ई. संतान -सिकन्दर लोदी उपाधि -19 अप्रैल, 1451 को ‘बहलोल शाह गाजी’ की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। धार्मिक मान्यता- धार्मिक रूप से सहिष्णु था राज्याभिषेक -19 अप्रैल, 1451 वंश – लोदी सिक्के का प्रचलन  =========== बहलोल लोदी ने ‘बहलोली सिक्के’ का प्रचलन करवाया, जो अकबर के समय तक उत्तर भारत में विनिमय का प्रमुख साधन बना रहा। अन्य जानकारी बहलोल लोदी दिल्ली का पहला अफ़ग़ान सुल्तान था, जिसने लोदी वंश की शुरुआत की। बहलोल के सुल्तान बनने के समय दिल्ली सल्तनत नाम मात्र की थी। ये शूरवीर, युद्धप्रिय और महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था। बहलोल लोदी (1451-1489 ई.) दिल्ली में