Skip to main content

अस्हाबे_फ़ील ‘हाथी वालों का’ क़िस्सा

हुज़ूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैदाईश से 50 या 55 दिन पहले यह वाक़िआ हुआ कि नजाशी हब्शा (इथोपिया के बादशाह) की तरफ़ से यमन देश का गवर्नर (हाकिम) अब्रहा अश्रम था, जो ईसाई मज़हब का मानने वाला था…। उसने देखा कि अरब देश के सभी आदमी मक्का आकर ख़ाना काबा का तवाफ़ (एक इबादत, जो काबा शरीफ़ के चक्कर लगाकर अदा होती है) करते हैं, तो उसने चाहा कि ईसाई मज़हब के नाम पर एक बहुत बड़ी व सुन्दर इमारत (चर्च) बना दूँ, ताक़ि अरब के लोग ख़ाना काबा को छोड़कर उस ख़ूबसूरत बनावटी काबे का आकर तवाफ़ करने लगें…।



चुनाँचे यमन देश की राजधानी ‘सनआ’ में उसने एक बहुत आलीशान चर्च (गिरजा) बनाया…। अरब देश में जब यह ख़बर मशहूर हुई तो क़बीला किनाना का कोई आदमी वहाँ आया और उसमें पाख़ाना करके भाग आया…।
बाज़ लोग कहते हैं कि अरब के नौजवानों ने उसके क़रीब आग जला रखी थी, हवा से उड़कर आग चर्च में लग गई और वह इमारत जलकर ढेर हो गई…।

अब्रहा को जब यह ख़बर मिली तो उसने ग़ुस्से में आकर क़सम खाई कि ख़ाना-ए-काबा (बैतुल्लाह) को ढहा कर ही दम लूँगा…। इसी इरादे से मक्का पर 60 हज़ार की फ़ौज लेकर हमले के इरादे से चल दिया…। रास्ते में जिस अरब क़बीले ने रुकावट डाली उसको ख़त्म कर दिया, तायफ़ के एक कबीले (#क़बीला_बनू_सक़ीफ़) ने उससे कोई जंग नहीं की, बल्कि अपने क़बीले से रास्ता बताने वाले #अबू_रग़ाल नामी शख़्स को साथ भेजा ताक़ि वो मक्का का रास्ता अब्रहा के लश्कर को बता सके…। अबू रग़ाल रास्ता बताता हुआ अब्रहा और उसके लश्कर को मक्का ले आया, यहाँ तक कि मक्का की सरहद में दाख़िल हुआ…।

 

अबू रग़ाल को अल्लाह के अजाब ने वहीं पकड़ लिया और वहीं मर गया… उस दौर में हाजी जब हज करने जाते थे तो क़बीला बनू सक़ीफ़ के अबू रग़ाल की कब्र पर पत्थर मारते और लानत भेजते थे…। अब्रहा के लश्कर में 13 हाथी भी थे और एक बहुत बड़े हाथी (जिसका नाम महमूद था और उसको चलाने वाले का नाम उनैस था) उस पर ख़ुद सवार था, मक्का के क़रीब पड़ाव डाला…।

मक्का के आस-पास मक्का वालों के जानवर चरा करते थे, वे जानवर अब्रहा के लश्कर वालों ने पकड़ लिये, जिन में 200 ऊँट हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दादा हज़रत अब्दुल-मुत्तलिब के भी थे, जो उस वक़्त मक्का के सरदार और ख़ाना काबा (बैतुल्लाह शरीफ़ की मस्जिद) के मुतवल्ली (प्रबंधक और देखभाल करने वाले) थे…।

जब उनको अब्रहा के हमले की ख़बर हुई तो क़ुरैश को जमा करके कहा कि घबराओ मत, मक्के को ख़ाली कर दो, ख़ाना काबा को कोई नहीं गिरा सकता, यह अल्लाह का घर है और वह ख़ुद इसकी हिफ़ाज़त करेगा…। उसके बाद अब्दुल-मुत्तलिब क़ुरैश के चन्द बड़े लोगों को साथ लेकर अब्रहा से मिलने और अपने ऊँट माँगने गये…। अब्रहा ने अब्दुल-मुत्तलिब का शानदार इस्तिक़बाल (स्वागत) किया…।



अल्लाह तआला ने अब्दुल-मुत्तलिब को बेमिसाल हुस्न व वक़ार (प्रभावी व्यक्तित्व) और दबदबा (रौब, शान व शौकत) दिया था, जिसको देखकर हर आदमी मरऊब हो जाता (असर मानता) था…।

अब्रहा भी हज़रत अब्दुल-मुत्तलिब को देखकर मरऊब हो गया और बहुत इज़्ज़त के साथ पेश आया…। यह तो मुनासिब न समझा कि उनको अपने तख़्त पर बैठाये, अलबत्ता उनकी इज़्ज़त की ख़ातिर यह किया कि ख़ुद तख़्त से उतर कर फ़र्श (ज़मीन) पर उनके पास बैठ गया…। बातचीत के दौरान हज़रत अब्दुल-मुत्तलिब ने अपने ऊँटो की रिहाई का मुतालबा (सवाल) किया…।

अब्रहा ने हैरान होकर कहा बड़े ताज्जुब (अचंभे) की बात है कि आपने मुझसे अपने ऊँटो के बारे मे तो सवाल किया और ख़ाना काबा जो आप और आपके बाप दादाओ के मज़हब और दीन की निशानी है, जिसको मैं गिराने के लिये आया हूँ उसकी आपको कोई फ़िक्र (परवाह) नहीं..?
अब्दुल-मुत्तलिब ने जवाब दिया कि मैं अपने ऊँटो का मालिक हूँ इसलिये मैंने अपने ऊँटो का सवाल किया, और काबे का मालिक ख़ुदा है, वह ख़ुद अपने घर को बचायेगा…।

अब्रहा ने कुछ ख़ामोशी के बाद अब्दुल-मुत्तलिब के ऊँट वापस देने का हुक्म दिया…। अब्दुल-मुत्तलिब अपने ऊँट लेकर वापस आ गये और क़ुरैश और मक्का वालों को हुक्म दिया कि मक्का ख़ाली कर दे और तमाम ऊँट जो अब्रहा से वापस मिले थे ख़ाना काबा के लिये वक़्फ़ (दान) कर दिये…।


हज़रत अब्दुल-मुत्तलिब चन्द आदमियों को साथ लेकर ख़ाना काबा पहुँचे और हज़रत आमना को जो हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की माँ है, उनको भी पास बैठाकर अल्लाह से दुआ माँगी:-

ऐ अल्लाह! इनसान अपनी जगह की हिफ़ाज़त करता है तू अपने घर की हिफ़ाज़त फ़रमा, और अहले सलीब (ईसाइयों) के मुक़ाबले में अपने घर की ख़िदमत करने वालों की मदद फ़रमा…। उनकी सलीब (ईसाइयों के क्रास का मज़हबी निशान) और उनकी तदबीर कभी भी तेरी तदबीर पर ग़ालिब (हावी) नहीं आ सकती…। लश्कर और हाथी चढ़ाकर लाये है ताकि तेरे अयाल (कुनबे वालों, यानी तेरे घर के पास रहने वालों) को क़ैद कर ले, तेरे हरम (इज़्ज़त वाले घर) की बर्बादी का क़स्द (इरादा) करके आये हैं, जहालत (बेइल्मी, नादानी व बेवक़ूफ़ी) की बिना पर तेरी अज़मत और जलाल (बड़ाई और बुज़ुर्गी) का ख़्याल नहीं किया…।

अब्दुल-मुत्तलिब दुआ से फ़ारिग़ होकर अपने साथियों के साथ पहाड़ पर चढ़ गये और अब्रहा अपना लश्कर और हाथी लेकर ख़ाना काबा को गिराने के इरादे से आगे बढ़ा…।



हरम की हद में पहुँचकर हाथी रुक गये और काबे की ताज़ीम (सम्मान व इज़्ज़त) में तमाम हाथियों ने अपना सर झुका लिया…। हज़ार कोशिशों के बावजूद भी हाथी आगे न बढ़े…। उनको किसी दूसरी तरफ़ को चलाया जाता तो दौड़ने लगते, लेकिन काबे की तरफ़ को चलाते तो एक इन्च भी आगे न बढ़ते, बल्कि अपना सर झुका लेते…।
यह मंज़र (नज़ारा और द्र्श्य) देखकर अब्रहा हाथी से उतरा और हाथियों को वहीं छोड़कर फ़ौज को आगे बढ़ने का हुक्म दिया…।

अचानक अल्लाह के हुक्म से छोटे-छोटे परिन्दो के झुंड के झुंड नज़र आये, हर एक की चोंच और पंजो में छोटी-छोटी कंकरियाँ थीं जो लश्कर पर बरसने लगीं…।
ख़ुदा की क़ुदरत से वे कंकरियाँ गोली का काम दे रही थीं… सर पर गिरती और नीचे से निकल जाती थीं, जिस पर वह कंकरी गिरती वह ख़त्म हो जाता था…। ग़र्ज़ कि अब्रहा का लश्कर तबाह व बर्बाद हुआ और खाए हुए भुस की तरह हो गया…।
अब्रहा के बदन पर चेचक के दाने निकल आये जिससे उसका तमाम बदन सड़ गया, बदन से पीप और लहू (ख़ून) बहने लगा…। एक के बाद एक बदन का हिस्सा कट-कटकर गिरने लगा और अब्रहा बदन में घटते-घटते म़ुर्गे के चूज़े के बराबर हो गया और उसका सीना फटा और दिल बाहर निकल कर गिरा और मर गया…।
जब सब मर गये तो अल्लाह तआला ने एक सैलाब भेजा जो सबको बहाकर दरिया में ले गया…।

इस वाक़िए को क़ुरआने पाक में सूर: फ़ील में बयान किया गया है:-

शुरु करता हूँ अल्लाह के नाम से जो निहायत मेहरबान, बड़ा रहम वाला है…।



क्या आपको मालूम नहीं कि आपके रब ने हाथी वालों के साथ क्या मामला किया? (1) क्या उनकी तदबीर को (जो कि काबा शरीफ़ को वीरान करने के बारे मे थी) पूरी तरह ग़लत नहीं कर दिया? (2) और उन पर गिरोह के गिरोह परिन्दे भेजे (3) जो उन लोगों पर कंकर की पत्थरियाँ फेंकते थे। (4) सो अल्लाह तआला ने उनको खाये हुए भूसे की तरह (पामाल) कर दिया…। (5)

Comments

Popular posts from this blog

Kanzul Muttalib fee Manaqib Ali Ibne Abi Talib Alahissalam

1. QUBOOL-E-ISLAM ME AWWAL AUR NAMAZ PADHNE ME AWWAL 1. "Ek Ansari Shakhs Abu Hamza se riwayat karte hain ke maine Hazrat Zaid bin Arqam RadiAllahu Anhu ko farmate hue suna ke sabse pehle Hazrat Ali RadiAllahu Anhu Imaan laaye." Is Hadees ko Imam Tirmizi ne riwayat kiya hai aur kaha hai ke ye Hadees Hasan Saheeh hai. 2. "Hazrat Zaid bin Arqam RadiAllahu Anhu se he marvi ek riwayat me ye alfaaz hain: "Huzoor Nabi-e-Akram SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam par sabse pehle Islam laane waale Hazrat Ali RadiAllahu Anhu hain." Is Hadees ki Imam Ahmed bin Hanbal ne riwayat kiya hai. 3. "Hazrat Anas bin Maalik RadiAllahu Anhu se riwayat hai ke Peer ke din Huzoor Nabi-e-Akram SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ki Baysat hui aur Mangal ke din Hazrat Ali RadiAllahu Anhu ne Namaz padhi." Is Hadees ko Imam Tirmizi ne riwayat kiya hai. 4. "Hazrat Abdullah ibne Abbas RadiAllahu Anhuma se riwayat hai ke wo farmate hain sabse pehle Hazrat Ali RadiAl...

Deciphering Egyptian Hieroglyphs in Muslim Heritage

The article is originally a talk presented at the international conference 1001 Inventions: Discover the Muslim Heritage in our World held at the Museum of Science and Industry in Manchester on the 8th of March 2006, on the occasion of the launch of the exhibition 1001 inventions. The conference proceedings are edited by Dr. Salim Ayduz and Dr. Saleema Kauser. It is interesting for me as an Egyptologist to notice how the Islamic environment created an atmosphere in which the intended scholar could freely seek knowledge wherever it came from, and in whatever ancient language/culture it may originate, thus giving the incentive to various scholars to dedicate their lives completely to the discovery and the reading of ancient scripts, such as Egyptian and Mesopotamian. Sadly we Egyptologists acknowledge no contribution from Arabic or Muslim authors, mainly because many Egyptologists worldwide are not aware of the relevance of Arabic sources to our discipline. Most Egyptologists have enough...

Hadith Jhoot Bolne Walo Par

  *بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ* *اَللّٰهُمَّ صَلِّ عَلٰى سَيِّدِنَا وَ مَوْلَانَا مُحَمَّدٍ وَّ عَلٰى اٰلَهٖ وَ اَصْحَابِهٖ وَ عَلىٰ سَيِّدِنَا وَ مُرْشِدِنَا وَ مَحْبُوْبِناَ حَضْرَتِ رَاجْشَاهِ السُّونْدَهَوِيِّ وَ بَارِكْ وَ سَلِّمْ۞* Al-Qur’an:-“Beshak Jhoot Bolne Walo Par Allah Ki Laanat Hai.  Reference  (Surah Aal-e-Imran 3:61) Hadees No:- 1 “Nabi-e-Kareem (ﷺ) Farmate Hai:-“Jhoot Se Bacho! Bilashuba Jhoot Gunah Ki Taraf Le Jata Hai,Aur Gunah Jahannum Me Pahunchaane Wala Hai.”  Reference  (Sunan Abi Dawud 4989-Sahih) Hadees No:- 2 “Bahut Saare Log Muh Ke Bal Jahannum Me Phenk Diye Jaayenge, Sirf Apni Zuban (Jhooth) Ki Wajah Se.  Reference  (Tirmizi Shareef) Hadees No:- 3 “Nabi-e-Kareem (ﷺ) Farmate hai:- “Main Zamanat Deta Hu Jannat ke Darmiyaan 1 Ghar ki, Us Shaksh Ko Jo Mazak Me Bhi Jhoot Na Bole.”  Reference  (Sunan Abu Dawood 4800) Hadees No:- 5 “Laanat Aur Halaqat Hai Us Shaksh Ke Liye Jo Logo Ko Hasane Ke Liye Jhoot...