“जो है नाम वाला, वही तो बदनाम है” -ये अल्फाज़ मुग़ल बादशाह औरंगजेब के ऊपर सबसे ज्यादा फिट बैठते हैं. जिस शख्स की कभी ‘तहज्जुद’ की नमाज़ क़ज़ा नहीं होती थी. जिसके शासनकाल में हिन्दू मनसबदारों की संख्या सभी मुग़ल बादशाहों की तुलना में सबसे ज्यादा थी. जिसने कट्टर मुसलमान होते हुए भी कई मंदिरों के लिए दान और जागीरें दीं. जिसने शिवाजी को क़ैद में रखने के बावजूद मौत के घाट नहीं उतारा, जबकि ऐसा करना उनके लिए मुश्किल नहीं था. जो खुद को हुकूमत के खजाने का सिर्फ ‘चौकीदार ‘समझता था (मगर वह आजकल के चौकीदारों की तरह नहीं था) और अपनी जीविकोपार्जन के लिए वह टोपियाँ सिलता और कुरान शरीफ के अनुवाद करता था.
औरंगजेब ऐसा बादशाह है जिसके साथ इतिहास और तास्सुबी इतिहासकारों ने कभी न्याय नहीं किया. एक ऐसा बादशाह, जिसे भारतीय इतिहास में सब से ज्यादा बदनाम किया गया है, मगर जो अपने खानदान के तमाम बादशाहों में सबसे ज्यादा मुत्तकी, परहेज़गार, इंसाफपसंद, खुदा से डरने वाला, हलाल रिजक खाने वाला और तहज्जुदगूज़ार बन्दा था. उस बादशाह का नाम है – हजरत औरंगजेब (रहमतुल्लाह अलैह), जिनका मजारे पाक औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में है.
क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हिन्दू धर्म के सिद्धांतों, कर्मकांडों का यथाविधि पालन करने वाले व्यक्ति को ‘समर्पित हिन्दू‘ कहा जाता है, कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों पर मजबूती से चलने वाले इंसान को ‘समर्पित कामरेड’ कहा जाता है, बुद्ध के आदर्शों पर चलने वाले भंते जी या बौद्ध को ‘समर्पित बौद्ध’ कहा जाता है. मगर इस्लाम के सिद्धांतों पर चलने वाले आदमी को ‘समर्पित मुसलमान‘ नहीं कहा जाता, बल्कि उसे ‘कट्टर मुसलमान‘ की उपाधि दी जाती है ? इसी भेदभाव का शिकार औरंगजेब जैसे बादशाह को भी होना पड़ा और आज तक उनके साथ ये लक़ब जुड़ा है कि वह एक कट्टर मुसलमान था, जो एक मन जनेऊ प्रतिदिन उतरवा कर ही खाना खाता था. जबकी इस बात के खंडन के लिए अँगरेज़ इतिहासकार प्रोफेसर अर्नाल्ड ने अपनी किताब ‘प्रीचिंग ऑफ़ इस्लाम‘ में लिखा है –“औरंगजेब के दौर के इतिहास में जहाँ तक मैंने तफ्तीश और पड़ताल की है, मुझको पता चला है कि कहीं भी, किसी भी हिन्दू को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाए जाने का कोई प्रमाण नहीं है.”
मुंशी इश्वरी प्रसाद अपनी मशहूर किताब ‘तारीखे हिन्द’ में लिखते हैं – परमात्मा की शान है कि औरंगजेब जितना रिआया का खैर ख्वाह था, इतिहास में उसे उतना ही ज्यादा बदनाम किया गया है. कोई उसे ज़ालिम कहता है, कोई खुनी, मगर हकीक़त में वह ‘आलमगीर’ का ही लकब पाने का अधिकारी है.
भारत में मुसलमानों की हुकुमत करीब 600 साल तक रही. दिल्ली मुसलमानों की राजधानी थी. वहां हर तरह की ताकत मुसलमानों के हाथ में थी. अगर मुस्लिम बादशाह हिन्दुओं को तलवार केबल पर मुसलमान बनाना चाहते तो वे सबसे पहले दिल्ली और आसपास के हिदुओ को ही मुसलमान बनाते, क्युकी ऐसा करने से उनकी हुकुमत को भी एक तरह से सुरक्षा मिल जाती क्युकी आसपास कोई दुश्मन आबादी ही नहीं रह जाती जो हुकुमत के खिलाफ विद्रोह कर सके. मगर यह एक आश्चर्यजनक तथ्य हमें नज़र आता है कि दिल्ली और उसके आसपास 50 मील की आबादी हमेशा बहुसंख्यक हिन्दुओं की ही रही और वे भी खुशहाल और इज्ज़त के साथ रहते आये थे. यह बात पंडित सुन्दर लाला शर्मा ने ‘गाँधी की क़ुरबानी’ से सबक’ नामक लेख में व्यक्त किया है-
औरंगजेब यदि किसी को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहते तो इसके लिए उनके सबसे बड़े दुश्मन शिवाजी का पोता शाहू जी सब से आसान शिकार था जो 7 साल की उम्र में क़ैद हो कर आया था. मगर औरंगजेब ने शाहू जी की परवरिश एक मराठा राजकुमार की तरह की और कभी भी उनके धर्मांतरण का कोई प्रयास नहीं किया. बल्कि उन्होंने खुद व्यक्तिगत रूचि ले कर शाहू जी की शादी बहादुर जी मराठा की बेटी के साथ धूमधाम से की, जैसे कोई बाप अपने बेटे की शादी कराता है.
नीचे की पंक्तियों में मैं औरंगजेब के वे तारीखी शब्द उद्धृत कर रहा हूँ, जो उनके ऊपर लगे कट्टरता और धर्मान्तरण के आरोपों को पूरी तरह गलत साबित करते हैं और औरंगजेब की एक ऐसी छवि प्रस्तुत करते हैं, जिसे इतिहास लिखने वाले अपराधियों ने हमेशा दुनिया वालों से छुपाने का गुनाह किया है:-
जरत औरंगज़ेब आलमगीर (रहमतुल्लाह अलैह) के शब्दों में:
संभाजी के इस बेटे शाहू जी की शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध किया जाये. इसके लिए दक्षिण से अच्छे पंडित बुलावा लिए जाएँ. उनकी शिक्षा-दीक्षा मराठा रीती-रिवाजों के अनुसार की जाए. और हाँ, शिवाजी की बेगम हमारी क़ैद में हैं. वे चाहें तो दक्षिण से अपने ख़ास दास-दासियों को अपने पास बुलावा सकती है जो एक राजा की बीवी के साथ रहा करते हैं. उनको यह महसूस नहीं होना चाहिए कि वे एक मुसलमान की क़ैद में हैं.‘
“शिवाजी ने हमसे ताजिंदगी दुश्मनी निभाई, शायद यही अल्लाह की मर्ज़ी थी, मगर उनके बाद उनकी बेगमों और बच्चों को यह एहसास नहीं होना चाहिए की हम उनसे भी दुश्मनी रखते हैं. यह बात सारी दुनिया को बता दी जाये कि हमारी दुश्मनी भी सिर्फ शिवाजी से थी, मगर उनके बाद उनकी बेगमों और बच्चों से हमारी कोई दुश्मनी नहीं है”
इसके बाद भी अगर कोई व्यक्ति या संगठन औरंगजेब को धार्मिक रूप से कट्टर और धर्मान्तरण का जुनूनी कहता है यही कहा जा सकता है कि वह पूर्वाग्रह से युक्त है. और मैं सोचता हूँ कि शक की तरह पूर्वाग्रह भी एक ऐसा मर्ज़ है, जिसका इलाज हकीम लुकमान के पास नहीं रहा होगा. किसी सड़क पर से औरंगजेब के नाम की तख्ती को हटा लेने से इतिहास में उनके नाम की तख्ती पर पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. कलम जब निष्पक्ष हो कर इस देश का इतिहास लिखेगी तो वह लिखेगी कि औरंगजेब कट्टर नहीं था बल्कि जिन्होंने उनके नाम की तख्ती को हटाने का काम किया है, वे सबसे बड़े कट्टर, धर्मांध, असहिष्णु और पूर्वाग्रही प्राणी थे.
1. QUBOOL-E-ISLAM ME AWWAL AUR NAMAZ PADHNE ME AWWAL 1. "Ek Ansari Shakhs Abu Hamza se riwayat karte hain ke maine Hazrat Zaid bin Arqam RadiAllahu Anhu ko farmate hue suna ke sabse pehle Hazrat Ali RadiAllahu Anhu Imaan laaye." Is Hadees ko Imam Tirmizi ne riwayat kiya hai aur kaha hai ke ye Hadees Hasan Saheeh hai. 2. "Hazrat Zaid bin Arqam RadiAllahu Anhu se he marvi ek riwayat me ye alfaaz hain: "Huzoor Nabi-e-Akram SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam par sabse pehle Islam laane waale Hazrat Ali RadiAllahu Anhu hain." Is Hadees ki Imam Ahmed bin Hanbal ne riwayat kiya hai. 3. "Hazrat Anas bin Maalik RadiAllahu Anhu se riwayat hai ke Peer ke din Huzoor Nabi-e-Akram SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ki Baysat hui aur Mangal ke din Hazrat Ali RadiAllahu Anhu ne Namaz padhi." Is Hadees ko Imam Tirmizi ne riwayat kiya hai. 4. "Hazrat Abdullah ibne Abbas RadiAllahu Anhuma se riwayat hai ke wo farmate hain sabse pehle Hazrat Ali RadiAl
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