आपका नाम मुहम्मद व आपका मुख्य लक़ब बाक़िरूल उलूम है।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म सन 57 हिजरी में रजब महीने की पहली तारीख़ को पवित्र शहर मदीना में हुआ था।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़ातिमा पुत्री हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम हैं।
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का पालन पोषण तीन वर्षों की आयु तक आपके दादा इमाम हुसैन व आपके पिता इमाम सज्जाद अलैहिमुस्सलाम की देख रेख में हुआ। जब आपकी आयु साढ़े तीन वर्ष की थी उस समय करबला की घटना घटित हुई। तथा आपको अन्य बालकों के साथ क़ैदी बनाया गया। अर्थात आप का बाल्य काल विपत्तियों व कठिनाईयों के मध्य गुज़रा।
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत की अवधि में शिक्षा के क्षेत्र में जो दीपक ज्वलित किये उनका प्रकाश आज तक फैला हुआ हैं। इमाम ने फ़िक़्ह व इस्लामी सिद्धान्तों के अतिरिक्त ज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भी शिक्षण किया। तथा अपने ज्ञान व प्रशिक्षण के द्वारा ज्ञानी व आदर्श शिष्यों को प्रशिक्षित कर संसार के सन्मुख उपस्थित किया। आप अपने समय में सबसे बड़े विद्वान माने जाते थे। महान विद्वान मुहम्मद इब्ने मुस्लिम, ज़ुरारा इब्ने आयुन, अबु नसीर, हश्शाम इब्ने सालिम, जाबिर इब्ने यज़ीद, हिमरान इब्ने आयुन, यज़ीद अजःली आपके मुख्यः शिष्यगण हैं।
इब्ने हज्रे हैतमी नामक एक सुन्नी विद्वान इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के ज्ञान के सम्बन्ध में लिखते है कि इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने संसार को ज्ञान के छुपे हुए स्रोतों से परिचित कराया। उन्होंने ज्ञान व बुद्धिमत्ता का इस प्रकार वर्णन किया कि वर्तमान समय में उनकी महानता सब पर प्रकाशित है।ज्ञान के क्षेत्र में आपकी सेवाओं के कारण ही आपको बाक़िरूल उलूम कहा जाता है। बाक़िरूल उलूम अर्थात ज्ञान को चीर कर निकालने वाला।
अब्दुल्लाह इब्ने अता नामक एक विद्वान कहते है कि मैंने देखा कि इस्लामी विद्वान जब इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की सभा में बैठते थे तो ज्ञान के क्षेत्र में अपने आपको बहुत छोटा समझते थे। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने कथनों को सिद्ध करने के लिए क़ुरआन की आयतें प्रस्तुत करते थे। तथा कहते थे कि मैं जो कुछ भी कहूँ उसके बारे में प्रश्न करें? मैं बताऊँगा कि वह क़ुरआन में कहाँ पर है।
एक बार इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के साथ अमवी (बनी उमय्या) बादशाह हिश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हुक्म पर अनचाहे तौर पर शाम (सीरिया) का सफ़र किया और वहां से वापस लौटते वक़्त रास्ते में एक जगह लोगों को जमा देखा और जब आपने उनके बारे में मालूम किया तो पता चला कि यह लोग ईसाई है कि जो हर साल यहाँ पर इस जलसे में जमा होकर अपने बड़े पादरी से सवाल जवाब करते है ताकि अपनी इल्मी मुश्किलात को हल कर सके यह सुन कर इमाम मुहम्मद बाक़िर और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिमुस्सलाम भी उस मजमे में तशरीफ़ ले गए।
थोड़ा ही वक़्त गुज़रा था कि वह बुज़ुर्ग पादरी अपनी शान व शौकत के साथ जलसे में आ गया और जलसे के बीच में एक बड़ी कुर्सी पर बैठ गया और चारों तरफ़ निगाह दौड़ाने लगा तभी उसकी नज़र लोगों के बीच बैठे हुए इमाम मुहम्मद बाक़िर अ. पर पड़ी कि जिनका नूरानी चेहरा उनकी बड़ी शख़्सियत की गवाही दे रहा था उसी वक्त उस पादरी ने इमाम अ. से पूछा कि हम ईसाईयों में से हो या मुसलमानों में से?
इमाम अ. ने जवाब दियाः मुसलमानों में से।
पादरी ने फिर सवाल कियाः आलिमो में से हो या जाहिलों में से?
इमाम अ.ने जवाब दियाः जाहिलों में से नहीं हूँ।
पादरी ने कहा कि मैं सवाल करूँ या आप सवाल करेंगे?
इमाम अ. ने फ़रमाया कि अगर चाहे तो आप सवाल करें।
पादरी ने सवाल कियाः तुम मुसलमान किस दलील से कहते हो कि जन्नत में लोग खाएंगे-पिएंगे लेकिन पेशाब-पाखाना नहीं करेंगे? क्या इस दुनिया में इसकी कोई दलील है?
इमाम अ.ने फ़रमाया: हाँ! इसकी दलील माँ के पेट में मौजूद बच्चा है कि जो अपना रिज़्क़ तो हासिल करता है लेकिन पेशाब-पाखाना नहीं करता।
पादरी ने कहाः तअज्जुब है आप ने तो कहा था कि आलिमों में से नहीं हूँ।
इमाम अ.ने फ़रमाया: मैंने ऐसा नहीं कहा था बल्कि मैंने कहा था कि जाहिलों में से नहीं हूँ।
उसके बाद पादरी ने कहाः एक और सवाल है?
इमाम (अ.स) ने फ़रमाया: बिस्मिल्लाह सवाल करें?
पादरी ने सवाल कियाः किस दलील से कहते हो कि लोग जन्नत की नेमतों जैसे फल वग़ैरा को इस्तेमाल करेंगें लेकिन वह कम नहीं होगी और पहले जैसी हालत पर ही बाक़ी रहेंगे। क्या इसकी कोई दलील है?
इमाम अ.ने फ़रमाया: बेशक इस दुनिया में इसका बेहतरीन नमूना और मिसाल चिराग़ की लो और रौशनी है कि तुम एक चिराग़ से हज़ारों चिराग़ जला सकते हो और पहला चिराग़ पहले की तरह रौशन रहेगा और उसमें कोई कमी नहीं होगी।
पादरी की नज़र में जितने भी मुश्किल सवाल थें सबके सब इमाम अ. से पूछ डाले और उनके बेहतरीन जवाब इमाम अ. से हासिल किए और जब वह अपनी कम इल्मी से परेशान हो गया तो बहुत ग़ुस्से में आकर कहने लगाः ऐ लोगों! एक बड़े आलिम को कि जिसकी मज़हबी जानकारी और मालूमात मुझ से ज़ियादा है यहां ले आए हो ताकि मुझे ज़लील करो और मुसलमान जान लें कि उनके रहबर और इमाम हमसे बेहतर और आलिम हैं।
ख़ुदा की क़सम! फिर कभी तुमसे बात नहीं करूंगा और अगर अगले साल तक ज़िन्दा रहा तो मुझे अपने दरमियान (इस जलसे) में नहीं देखोंगे।
इस बात को कह कर वह अपनी जगह से खड़ा हुआ और अंदर चला गया।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत सन 114 हिजरी में ज़िलहिज्जा महीने की सातवीं तारीख़ को सोमवार के दिन हुई। बनी उमैय्या के ख़लीफ़ा हिश्शाम इब्ने अब्दुल मलिक के आदेशानुसार एक षड़यंत्र के अन्तर्गत आपको ज़हर दिया गया। शहादत के समय आपकी आयु 57 वर्ष थी।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मदीना के जन्नतुल बक़ीअ नामक क़ब्रिस्तान में है। प्रत्येक वर्ष लाखों श्रृद्धालु आपकी समाधि पर सलाम व दर्शन हेतू जाते हैं।
अस्सलामु अलैका यब्न रसूलल्लाह या इमामे मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातु
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