ताजुसशरिया कौन????
ताजुसशरिया का माना है शरीयत का ताज
इस्लाम के क़वानीन को शरीयत कहा जाता है। वो अल्लाह और उसके महबूब रसूल आखिरउज़्ज़मा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मोमिनीन के लिए नाफ़िज़ किये है।
ताज का माना तो बखूबी सभी को मालूम है।
ताज हुकूमत व इकतिदार की निशानी है।
जो साहिबे शरीयत है वही शरीयत का ताज है। जो की हमारे प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम है।
1400 साल की तारीख ए इस्लाम में किसी को भी शरीयत का ताजवर नहीं कहा गया। बड़े बड़े इमाम मुहद्दिस मुफ़स्सिर, ग़ौस क़ुतुब अब्दाल हुए। विलायत ए अकबर में हुज़ूर ग़ौसे आज़म शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी रदिअल्लाहु अन्हु जैसे हस्ती ज़हूर पज़ीर हुए लेकिन किसी को भी शरीयत का ताज नहीं कहा गया क्यूंकि शरीयत मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की, वही उसके ताजवर।
आज के किसी मुल्ला को ये कहकर मुखातिब करना हद से आगे बढ़ना है। और गुनाहे कबीरा है।
ये कहना नुबूवत के मुतरादिफ है। ये ऐसा ही है जैसे चपरासी को प्राइम मिनिस्टर कहना।
या ऐसा ही है के किताब किसी और की और सरे वरक़ पर किसी और का नाम! इसको तो बेइंसाफी भी नहीं कह सकते ये तो सरासर हिमाक़त और सरकशी है। अगर किन्ही लोगो ने भी चापलूसी में ऐसे अलक़ाब दिए है तो इसपर राज़ी हो जाना कितनी बुरी बात है।
कोई उम्मती कैसे ताजुसशरिया हो सकता है जो की जानकार हो सकता है शरीयत का लेकिन मुख्तार नहीं हो सकता।
जिसकी शरीयत वही उसका ताज।
लेकिन अगर किसी ने अपनी मर्ज़ी के कुछ क़ानून घड कर ये इस्तिलाह ली हैं तो फिर ठीक है।
इस्लाम की शरीयत से उसका कोई ताल्लुक नहीं!
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