*क़ायदह नं0 1* – असनाद (हदीस के रावियों यानि बयान करने वालों को असनाद कहते हैं) के लिहाज़ से हदीस की बहुत सारी किस्में हैं मगर यहां सबको समझाने की ज़रूरत नहीं सिर्फ 3 ही काफी है सहीह,हसन और ज़ईफ
*सहीह* – ये वो हदीस है जिसमे 4 खूबियां होती हैं
1. इसकी असनाद मुत्तसिल होती है यानि किताब के मुअल्लिफ से लेकर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तक कोई रावी छूटा नहीं होता
2. इसके सारे रावी अव्वल दर्जे के मुत्तक़ी व परहेज़गार होते हैं कोई फासिक़ व मसतूरुल हाल नहीं होता
3. इसके तमाम रावी निहायत ही क़वी हाफिज़ा वाले होते हैं और किसी का भी हाफिज़ा बीमारी या बुढ़ापे की वजह से कमज़ोर नहीं होता
4. ये किसी भी मशहूर हदीस के खिलाफ नहीं होती
*हसन* – ये वो हदीस है जिसके रावियों में ऊपर दर्ज की गई सिफत आला दर्जे की ना हो
*ज़ईफ* – ये वो हदीस होती है जिसके रावियों में कोई रावी मुत्तक़ी या क़वियुल हाफिज़ा ना हो यानि जो सिफत हदीस सहीह में मोअतबर थी इसमें कोई एक सिफत ना हो
*क़ायदह नं0 2* – सहीह और हसन अहकामो फज़ायल सब में मोअतबर है मगर हदीस ज़ईफ सिर्फ फज़ायल में मोअतबर है यानि इससे किसी शख्स या किसी अमल की फज़ीलत तो साबित की जा सकती है मगर ये अहकाम में मोअतबर नहीं मतलब ये कि इससे हलाल व हराम का हुक्म साबित नहीं किया जा सकता,मगर ये बात अच्छी तरह ज़हन में रखें कि हदीसे ज़ईफ किसी झूटी या गढ़ी हुई हदीस को नहीं कहते जैसा कि गैर मुक़ल्लिदों ने अवाम को बहका रखा है बल्कि ये हदीस है और मोअतबर है बस हमारे फुक़्हा ने एहतियात की बिना पर इसका दर्जा पहली दोनों से कम रखा है
*क़ायदह नं0 3* – अगर हदीसे ज़ईफ भी किसी और असनाद से हसन बन जाये तो बिला शुबह अब उससे अहकाम भी साबित किये जा सकते हैं और वो मुतलकन मोअतबर होगी
*क़ायदह नं0 4* – एक ही ज़ईफ हदीस कई सनदों से मरवी है अगर चे सबकी सनदों में ज़ईफ रावी पाये जाते हैं मगर फिर भी कई असनाद से मरवी होने की बिना पर अब वो ज़ईफ ना रही बल्कि हसन बन गई इसी तरह उल्मा-ए कामेलीन के अमल से भी हदीसे ज़ईफ हसन बन जाती है जैसा कि इमाम तिर्मिज़ी किसी हदीस के तअल्लुक़ से फरमाते हैं कि “ये हदीस है तो गरीब यानि ज़ईफ मगर अहले इल्म का इस पर अमल रहा है” इसका ये मतलब नहीं है कि ज़ईफ हदीस ना क़ाबिले अमल थी मगर उल्मा ने बेवक़ूफी से इस पर अमल कर लिया नहीं बल्कि इसका मतलब ये है कि हदीस असनाद के लिहाज़ से तो ज़ईफ थी मगर उल्मा के अमल ने इसे हसन बना दिया और बाज़ मर्तबा वलियों के कश्फ से भी ज़ईफ हदीस हसन बन जाती है जैसा कि शैख मुहि उद्दीन इब्ने अरबी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने एक हदीस सुनी थी जो 70,000 बार कल्मा पढ़कर मुर्दे को बख़्शने से उसकी मग़फिरत हो जाने के तअल्लुक़ से थी,आपने एक जवान को देखा जो रो रहा था और उसका कश्फ मशहूर था तो आपने उससे रोने की वजह पूछी तो कहने लगा कि मेरी मां का इंतेकाल हो गया है और मैं उसे जहन्नम की तरफ जाता हुआ देख रहा हूं तो आपके पास 70000 कल्मा पढ़ा हुआ था आपने बिना उसको बताये दिल ही दिल में उसकी मां को ये बख्श दिया अब वो जवान हंसने लगा फिर आपने वजह पूछी तो कहने लगा कि अब मैं अपनी मां को जन्नत में जाते हुए देख रहा हूं तो आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि आज 2 बातें साबित हो गई पहली तो इस हदीस की सेहत इसके कश्फ से मालूम हो गई और दूसरी इसका कश्फ भी इस हदीस से सही मालूम हो गया,यही हदीस वहाबियों के इमाम मौलवी कासिम नानोतवी ने अपनी किताब तहज़ीरून्नास सफह 59 पर हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के क़ौल से नकल किया है
*क़ायदह नं0 5* – असनाद के ज़ोअफ़ से हदीस के मतन का ज़ोअफ़ लाज़िम नहीं हो सकता है कि एक ही हदीस कई असनाद से मरवी हो जिसमे एक में तो ज़ोअफ़ पाया जाता है मगर दूसरे से वो हसन और तीसरे से सही हो,जैसा कि खुद इमाम तिर्मिज़ी एक हदीस के तअल्लुक़ से फरमाते हैं कि “ये हदीस हसन भी है सही भी है और ग़रीब भी है
*क़ायदह नं0 6* – बाद का ज़ोअफ़ अगले मुहद्दिस या मुज्तहिद के लिए मुज़िर नहीं क्योंकि हो सकता है कि जो ज़ईफ़ हदीस इमाम बुखारी व इमाम तिर्मिज़ी को मिली उसमे ज़ोअफ़ बाद में आया हो जबकि यही हदीस जब इमामे आज़म को मिली तो ज़ोअफ़ ना रहा हो और ये ज़ोअफ़ हदीस में इमामे आज़म के बाद शामिल हुआ हो जैसा कि खुद साहिबे किताब अपना एक वाकिया दर्ज करते हुए लिखते हैं कि “एक मर्तबा एक वहाबी से मेरी गुफ्तुगू हुई तो मैंने इमाम के पीछे क़िरात मना होने पर ये हदीस पढ़ी कि इमाम की क़िरात मुक़्तदी की क़िरात है तो वहाबी जी बोले कि ये हदीस ज़ईफ़ है इसमें जाबिर जअफी ज़ईफ़ रावी है,तो मैंने उनसे पूछा कि जाबिर जअफी कब पैदा हुआ था तो तड़पकर बोले कि 235 हिजरी में तो मैंने कहा जब मेरे इमाम ने इस हदीस से इस्तेदलाल फरमाया था उस वक़्त जाबिर जअफी अपने बाप की पुश्त में भी ना आया था क्योंकि इमामे आज़म की पैदाईश 80 हिज्री और विसाल 150 हिजरी में है,लिहाज़ा जब इमामे आज़म को ये हदीस मिली तो बिलकुल सही थी और ज़ोअफ़ बाद में पाया गया
*क़ायदह नं0 7* – किसी फ़क़ीह का ये कहना कि फलां हदीस ज़ईफ़ है उस वक़्त तक मोअतबर नहीं जब तक कि ये न बताये कि क्यों ज़ईफ़ है और रावी में क्या ज़ोअफ़ है क्योंकि वजहे ज़ोअफ़ में भी अइम्मा का इख्तिलाफ है कि बअज़ चीज़ें जैसे घोड़े दौड़ाना या जायज़ हंसी मज़ाक को बअज़ लोगों ने रावी का ऐब जाना मगर हंफियों के नज़दीक़ ये ऐब नहीं
*क़ायदह नं0 8* – अगर किसी रावी को किसी मुहद्दिस ने ज़ईफ़ कहा और किसी ने उसे मुत्तक़ी कहा तो उसे मुत्तक़ी ही माना जायेगा और उसकी रिवायत ज़ईफ़ ना होगी
*क़ायदह नं0 9* – किसी हदीस को अगर मुहद्दिस सहीह या हसन ना जाने तब भी उसे ज़ईफ़ ना समझा जायेगा क्योंकि हसन और ज़ईफ़ के बीच में काफी दर्जे हैं
*क़ायदह नं0 10* – सहीह हदीस का दारोमदार बुख़ारी मुस्लिम या सियह सित्तह पर नहीं है,सियह सित्तह को सही कहने का मतलब ये नहीं कि उनकी सारी हदीसें सही है और दूसरी किताबों की बाक़ी हदीसें ज़ईफ़ नहीं बल्कि औरों से ज़्यादा इसमें सही हदीसें हैं,हमारा ईमान हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर है ना कि बुख़ारी या मुस्लिम पर हुज़ूर की हदीस जहां से मिले हमारी सर आंखों पर है फिर चाहे वो बुख़ारी में हो या ना हो,गैर मुक़ल्लिदों की ये भी एक अंधी तक़लीद है कि इमामे आज़म पर तो इनका ईमान नहीं मगर बुखारी पर ऐसा ईमान रखते हैं कि पूछिये मत जबकि इमाम बुखारी की पैदाईश 204 हिजरी में हुई यानि कि इमामे आज़म के विसाल के 54 साल बाद आप पैदा हुए तो ईमान से फैसला कीजिये कि जो पहले दुनिया में आया और जिसका ज़माना हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से क़रीब रहा हो जिसने सहाबा से मुलाकात की हो उसे ज़्यादा सही हदीसें मिलेगी या बाद वालों को
*क़ायदह नं0 11* – किसी मुहद्दिस या आलिम का बग़ैर किसी ऐतराज़ के ज़ईफ हदीस को क़ुबूल कर लेना हदीस के क़वी होने के लिए काफी है जैसा कि साहिबे मिश्कात हज़रत अल्लामा इमाम वली उद्दीन मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह खतीब तबरेज़ी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि “मैंने जब हदीसों को उन मुहद्देसीन की तरफ मंसूब कर दिया तो गोया हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की तरफ ही मंसूब कर दिया” इस क़ायदे से आप समझ गए होंगे कि इमामे आज़म की इस्तेदलाल की हुई हदीसें हरगिज़ ज़ईफ नहीं हो सकती
*क़ायदह नं0 12* – अगर क़ुर्आनो हदीस में तआरूज़ नज़र आये तो हदीस के ऐसे मायने करने चाहिए कि तआरूज़ खत्म हो जाए मसलन क़ुर्आन में है कि “जब क़ुर्आन पढ़ा जाए तो उसे कान लगाकर सुनो और चुप रहो कि तुम पर रहम हो” वहीं हदीस शरीफ में है कि “जो सूरह फातिहा ना पढ़े उसकी नमाज़ नहीं” ये एक दूसरे के खिलाफ मालूम होती है तो इसमें इस तरह ततबीक़ दी जायेगी कि क़ुर्आन का हुक्म मुतलक़ है और हदीस का हुक्म इमाम या तन्हा नमाज़ी के लिए है तो ऐतराज़ उठ गया कि जो तन्हा नमाज़ पढ़ेगा वो सूरह फातिहा पढ़ेगा और जो जमाअत से नमाज़ पढ़ेगा तो इमाम की क़िरात ही मुक़्तदी की क़िरात होगी लिहाज़ा दोनों पर अमल हो गया,और जिसमे ततबीक़ ना हो सके तो ऐसी हदीस को मंसूख समझा जायेगा
*क़ायदह नं0 13* – हदीस का ज़ईफ होना गैर मुक़ल्लिदों के लिए क़यामत है क्योंकि उनके मज़हब का दारो मदार ही इन रवायतों पर है रिवायात ज़ईफ हुई तो उनका मसअला भी फना हो जायेगा मगर हनफियों के लिए ये ज़ोअफ कुछ मुज़िर नहीं क्योंकि हमारी दलायल ये रिवायतें नहीं बल्कि क़ौले इमाम है और इमाम की दलील क़ुर्आनो हदीस क्योंकि जो असनादें बुखारी व मुस्लिम में हैं जब हमारे इमाम को ये हदीसें मिली तो उनकी असनाद ये ना थी
📕 जाअल हक़,हिस्सा 2,सफह 4-9
*ⓩ अगर इन क़वाइद को आपने अपने ज़हन में बिठा लिया तो ज़ईफ ज़ईफ की रट लगाने वालों को बहुत आसानी से चुप करा सकते हैं*
1. QUBOOL-E-ISLAM ME AWWAL AUR NAMAZ PADHNE ME AWWAL 1. "Ek Ansari Shakhs Abu Hamza se riwayat karte hain ke maine Hazrat Zaid bin Arqam RadiAllahu Anhu ko farmate hue suna ke sabse pehle Hazrat Ali RadiAllahu Anhu Imaan laaye." Is Hadees ko Imam Tirmizi ne riwayat kiya hai aur kaha hai ke ye Hadees Hasan Saheeh hai. 2. "Hazrat Zaid bin Arqam RadiAllahu Anhu se he marvi ek riwayat me ye alfaaz hain: "Huzoor Nabi-e-Akram SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam par sabse pehle Islam laane waale Hazrat Ali RadiAllahu Anhu hain." Is Hadees ki Imam Ahmed bin Hanbal ne riwayat kiya hai. 3. "Hazrat Anas bin Maalik RadiAllahu Anhu se riwayat hai ke Peer ke din Huzoor Nabi-e-Akram SallAllahu Alaihi wa Aalihi wa Sallam ki Baysat hui aur Mangal ke din Hazrat Ali RadiAllahu Anhu ne Namaz padhi." Is Hadees ko Imam Tirmizi ne riwayat kiya hai. 4. "Hazrat Abdullah ibne Abbas RadiAllahu Anhuma se riwayat hai ke wo farmate hain sabse pehle Hazrat Ali RadiAl
Ek sawal umru bin aas se hadees li jayegi ya nahi
ReplyDeleteJo rawaee muhibe Panjatan nahi unki hadith ko Haq wale nahi mante
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