माहे रमज़ानुल मुबारक में नेकियों का अज्र बहुत बढ़ जाता है लिहाज़ा कोशिश कर के ज़्यादा से ज़्यादा नेकियां इस माह में जमा कर लेनी चाहियें। चुनान्चे ह़ज़रते सय्यिदुना इब्राहीम नख़्इ़र् फ़रमाते हैं: माहे रमज़ान में एक दिन का रोज़ा रखना एक हज़ार दिन के रोज़ों से अफ़्ज़ल है और माहे रमज़ान में एक मरतबा तस्बीह़ करना (यानी कहना) इस माह के इ़लावा एक हज़ार मरतबा तस्बीह़ करने (यानी ) कहने से अफ़्ज़ल है और माहे रमज़ान में एक रक्अ़त पढ़ना गै़रे रमज़ान की एक हज़ार रक्अ़तों से अफ़्ज़ल है। (अद्दुर्रुल मन्स़ूर, जिल्द:1, स़-फ़ह़ा:454)
पेश है रमज़ान के 30 रोज़ों के अमल …
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