इली दीदम दवाए दर्द मंदा,सौ मुश्किलम आसां या शाह मर्दा
तुरा दामन गिरफ्तम या शेर यजदा,बलाए बूद रा नाबूद कर्दा..
21 रमज़ान :-यौमे शहादत -मौला ए कायनात हज़रत अली करमल्लाहू तआला वजहुल करीम-
शाहे नजफ़, हैदर ए कर्रार - शेरे खुदा, मौला अली मुश्किल कुशा इमाम ए अली मुर्तुजा करमल्लाहू ताला वजहुल करीम जिनकी बहादुरी का लोहा सभी कल भी मानते थे और आज भी मानते है I उनके बारे में कुछ भी कहना सूरज के आगे दिया दिखलाने जैसा ही है , सारी कायनात मिलकर भी अगर हज़रत अली की अजमतों को बयान करना चाहे तो भी मुकम्मल शान ए अली बयाँ नहीं हो सकती है I
पैदाइश काबे शरीफ में
आप अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दामाद, जन्नते खातून हज़रते फातिमा के शौहर, और इमामे हसन ओ हुसैन के वालिद है I जिनकी पैदाइश मक्का ए मोअज्ज़मा में पवित्र काबे शरीफ़ में हुवी हो, ओर शहादत मस्जिद में हुवी हो. उस इमाम ए अली र.अ.की अज़मत का क्या कहना I जब आप पैदा होने वाले थे तो अल्लाह की कुदरत से काबे की दीवार का वो हिस्सा जिसे आज रुक्न ऐ यमनी कहते हैं दो हिस्से मैं बट गया जिसमे आपकी वालदा काबे के अंदर दाखिल हुवी और इस तरह आप 17 मार्च सन 600 , यानि 13 रज्जब जुमे को काबे शरीफ में पैदा हुवे | वो काबा जिसे अल्लाह का घर कहा गया है, | वो काबा जिसका तवाफ़ सारी दुनिया करती है वो काबा, जिसके सिम्त सभी मुसलमान नमाज़ पढ़ते है, उस मुबारक जगह पर न उनसे पहले कोई पैदा हुवा है, और न ही कभी हो सकेगा I
आप नबी ए करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ सारी ज़िन्दगी उनका हमसाया बनकर रहे I पैदा होने पर आपने तब तक अपनी आँखे नहीं खोली, जब तक नबी ए करीम आपके सामने नहीं आये, आपकी तरबियत व तालीम भी रसूले अकरम के घर पर ही, उनकी छत्र छाया में हुई I ईमान लाने वाले मर्दों में बच्चो में सबसे पहले हज़रत अली ही है, तो वही बड़ो में हज़रत अबू बक्र सिद्दीक र.अ. और औरतो में माँ साहेबा हज़रत ख़दीजा र.अ. है I नबी ए करीम हुजुर (स.अ.व.) नमाज़ के लिये मस्जिदुल हराम (ख़ान ए काबा) में जब भी जाते थे, तो उनके पीछे पीछे हज़रात अली (र.अ.) और माँ साहेबा जनाबे ख़दीजा र.अ.भी साथ होते और नमाज़ पढ़ते थे, जबकि इन तीन अफ़राद के अलावा कोई नमाज़ नही पढ़ता था।
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने खुद हजरत अली के बारे में फ़रमाया था की : “मैं और अली बिन अबी तालिब, आदम की ख़िलक़त से चार हज़ार साल पहले ख़ुदा के नज़दीक एक नूर थे, जिस वक़्त ख़ुदावंदे आलम ने (जनाबे) आदम को ख़ल्क़ फ़रमाया, उस नूर के दो हिस्से किये, जिसका एक हिस्सा मैं हूँ और दूसरा हिस्सा अली बिन अबी तालिब (अलैहिस्सलाम) हैं। (तज़किरतुल ख़वास पेज 46)
कुराने करीम में ज़िक्र
अल्लाह ने कुराने करीम में भी बहोत से मक़ाम पर आपके बारे में बतलाया है,
लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिये अपनी जान तक बेच डालते हैं और अल्लाह ऐसे वंदों पर बड़ा ही शफ़क़त वाला और मेहरबान है।(सूरा बक़रा आयत 207) यह आयते शरीफ़ा उस वक़्त नाज़िल हुई जब पैग़म्बरे अकरम (स.अ.व.) अबू बक्र के साथ मुशरेकीने मक्का के हमलों से बच कर ग़ार में पनाह लिये हुए थे और हज़रत अली (अ) पैग़म्बरे अकरम (स.अ.व.) के बिस्तर पर सोए हुए थे।इसी तरह एक और आयत में कहा गया है
“ आप कह दीजिए कि मैं तुम से इस तहलीग़े रिसालत का कोई अज्र नही चाहता सिवाए इसके कि मेरे क़राबत दारों से मुहब्बत करो।(सूरा शूरा आयत 23)जब पैग़म्बर रसूले अकरम (स.अ.व.) पर यह आयत नाज़िल हुई तो इब्ने अब्बास ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह आपके वह रिश्तेदार कौन है जिनकी मुहब्बत हम लोगों पर वाजिब है? तो आप हज़रत (स.अ.व.) ने फ़रमाया: मेरे वो रिश्तेदार है, अली, फ़ातेमा और उनके दोनो बेटे,।
मेहनत, मशक्कत वो सखावत
आप इस्लाम के चौथे खलीफा हुवे, और आपने 30 सालो तक इमामत की, और सबसे पहले इमाम हुवे, आपके बाद भी आपके घराने से भी सभी इमाम हुवे I हज़रत अली इल्म के साथ साथ बहादुरी का पैकर थे तो वही दूसरी ओर आपको हमेशा मेहनत, मशक्कत करना भी पसंद था i हजरत अली का शौक था बाग़ों को लगाना व कुएं खोदना। यहाँ तक कि जब उन्होंने इस्लामी खलीफा का ओहदा संभाला तो भी बागों व खेतों में खुद भी मेहनत करने का उनका अमल जारी रहा। उन्होंने अपने दम पर अनेक रेगिस्तानी इलाकों को नखिलस्तान में बदल दिया था। मदीने के आसपास उनके लगाये गये बाग़ात आज भी देखे जा सकते हैं। उनकी सखावत को कौन नहीं जानता है, लिहाज़ा इससे होने वाली आमदनी को वे गरीबो में बाट दिया करते थे, आपने अपने पास कभी कुछ जमा करके नहीं रखा, और आप जमाखोर व्यापारियों को भी पसंद नहीं करते थे, यहाँ तक की आप अपने बेटो को भी यही तालीम दिया करते थे की मेहनत करो और कभी खजांची बनने की कोशिश मत करना I ये हजरत अली ही थे, जिनका फरमान था की “मजदूरों को उसकी मजदूरी उसका पसीना सूखने से पहले अदा कर देनी चाहिए “I
हज़रत अली र.अ.की शुजाअत (बहादुरी)
इतिहासकार भी इस बात को मानते है की हज़रत अली जैसा बहादुर उनसे पहले न कोई हुवा था न आइन्दा कभी हो सकेगा I खैबर की जंग में जिस किले को फ़तेह करना मुश्किल समझा जाता था, उस किले का भारी भरकम दरवाज़ा एक हाथ से उखाड़ने का कारनामा जिसने किया वो ज़ात है अली और इसका वर्णन मशहूर खोजकर्ता “रिप्ले” ने अपनी किताब 'बिलीव इट आर नाट' में भी किया है। जिसमे उसने कहा है, विश्वास नहीं होता की कोई इन्सान इतना ताकतवर भी हो सकता है, जो न सिर्फ इतना मज़बूत दरवाज़ा उखाड़ सकता है, बल्कि उसे ढाल बनाकर उससे दुश्मनों को नेस्तनाबूद भी कर सकता है I इस्लाम की सबसे पहली जंग, जंगे बद्र में भी बहादुरी से जंग कर दुश्मनों को शिकस्त करने वाली ज़ात का नाम है अली जिसमें एक तरफ सिर्फ 313 मुसलमान थे तो दूसरी तरफ 1000 या उससे भी ज्यादा कुफ्फारे मक्का, जिसमे दुश्मनों के 70 लोग मारे गए और उनमे से 36 लोगो को अकेले मार गिराने वाली ज़ात का नाम है अली ,इसी तरह जंगे ओहद में जबकि चारों ओर से मुसलमानों पर हमला कर दिया था, जिसका परिणाम यह हुआ कि पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा हज़रत हम्ज़ा सहित बहुत से मुसलमान योद्धा शहीद हो गये थे । उस युद्ध में हज़रत अली और कुछ मुसलमानों ने पैग़म्बरे इस्लाम की रक्षा की और उन्हें दुश्मनों के हमलों से सुरक्षित रखा । इस जंग में आसमान में हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने कहा था की जंग में अली के अलावा कोई जवान नहीं है और ज़ुलफ़ेक़ार के सिवा कोई तलवार नहीं है I इस जंग के बाद हज़रत अली ने जब यह देखा कि लगभग 70 मुसलमान शहीद हो गये हैं और वे शहीद नहीं हुए तो वे बेहद रंजीदा हो गए जबकि वे बहुत घायल हो चुके थे। पैग़म्बरे इस्लाम जब इस बात को समझ गये तो उन्होंने फरमाया अये अली “ अभी वक्त नहीं आया है, बाद में तुम्हारा नाम भी शहीदो में ही शुमार होगा ।“
हज़रत अली र.अ.का इल्म
मौला ए कायनात हज़रत अली करमल्लाहू ताला वजहहुल करीम के ज़िन्दगी का एक और अहेम हिस्सा उनका इल्म है, सभी आपके इल्म का लोहा मानते है I जो की उनकी लिखी किताबो में आज भी महफूज़ है, जिनमें से कुछ किताबो के नाम इस प्रकार हैं
1. किताबे अली - इसमें कुरआन के साठ उलूम का जि़क्र है।
2. जफ्रो जामा (इस्लामिक न्यूमरोलोजी पर आधारित)- इसके बारे में कहा जाता है कि इसमें गणितीय फार्मूलों के द्वारा कुरान मजीद का असली मतलब बताया गया है. तथा क़यामत तक की समस्त घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है. यह किताब अब अप्राप्य है.
3. किताब फी अब्वाबुल फिक़ा
4. किताब फी ज़कातुल्नाम
5. सहीफे अलफरायज़
इसके अलावा हज़रत अली के खुत्बों के दो मशहूर संग्रह भी उपलब्ध हैं। उनमें से एक का नाम नहजुल बलाग़ा व दूसरे का नाम नहजुल असरार है। इन खुत्बों में आपने दीन के साथ दुनियावी बाते भी बतलाई है यहाँ तक की आपने बहुत से वैज्ञानिक तथ्यों के बारे में भी बतलाया है. और बहोत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया. जिनमे से कुछ इस तरह से है
आपने आज से 1400 साल पहले जो बाते बतलाई थी बाद में वही बाते साइंस की खोज में सहायक हुवी, और तमाम वैज्ञानिको ने उन्हें एक महान वैज्ञानिक माना I
एक बार एक प्रश्नकर्ता ने उनसे सूर्य की पृथ्वी से दूरी के बारे में पूछा तो आपने जवाब में बताया कि एक अरबी घोड़ा पांच सौ सालों में जितनी दूरी तय करेगा वही सूर्य की पृथ्वी से दूरी है. उनके इस कथन को बाद में वैज्ञानिकों ने पूरी तरह सही होना पाया क्योकि जब यह दूरी नापी तो 149600000 किलोमीटर पाई गई I अरबी घोडे की औसत चाल 35 किमी/घंटा होती है और इससे यही दूरी निकलती है I वैज्ञानिको को हैरत है की इतनी सटीक जानकारी किसी इंसान को आज से 1400 सौ साल पहले कैसे हो सकती है I माना जाता है की जीवों में कोशिका (cell) की खोज 17 वीं शताब्दी में लीवेन हुक ने की. लेकिन नहजुल बलाग का निम्न कथन ज़ाहिर करता है कि हज़रत अली को कोशिका की जानकारी बहोत पहले से थी. ''जिस्म के हर हिस्से में बहुत से अंग होते हैं. जिनकी रचना उपयुक्त और उपयोगी है. सभी को ज़रूरतें पूरी करने वाले शरीर दिए गए हैं. सभी को रूहानी ताक़त हासिल करने के लिये दिल दिये गये हैं. सभी को काम सौंपे गए हैं और उनको एक छोटी सी उम्र दी गई है. ये अंग पैदा होते हैं और अपनी उम्र पूरी करने के बाद मर जाते हैं. (खुत्बा-81) स्पष्ट है कि 'अंग से हजरत अली का मतलब कोशिका ही था.' आपकी इस दलील से वैज्ञानिक आपके इल्म के कायल हो गए I अगर हम बात करे आइन्स्टीन के सापेक्षकता के सिद्धांत की तो वो भी हजरत अली ने पहले ही बतला दिया था I इसी तरह के साइंस की सैकड़ो थ्योरी है जो हज़रत अली की बतलाई हुई है चाहे वो मेडिकल साइंस से सम्बंधित हो या फिर मैथ्स,यानि गणित की हो सभी पर आपके जवाब इतने सटीक है की उन पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है I चिकित्सा का बुनियादी उसूल बताते हुए आपने कहा था , ''बीमारी में जब तक हिम्मत साथ दे, चलते फिरते रहो i दूर दराज़ से लोग उनसे दीनी – दुनियावी हर तरह के पेचीदे मसले पूछने आया करते थे जिसका वो हमेशा सटीक और तार्किक जवाब दिया करते थे,." इल्म(ज्ञान) प्राप्त करने के लिए हजरत अली ने खास तौर से जोर दिया, वे कहते थे, '' इल्म की तरफ बढ़ो, इससे पहले कि उसका हरा भरा मैदान खुश्क हो जाए."
हज़रत अली र.अ.का न्याय
एक अन्य मशहूर फैसले में एक लड़का हज़रत अली(र.अ.) के पास आया जिसका बाप दो दोस्तों के साथ बिज़नेस के सिलसिले में गया था। वे दोनों जब लौटे तो उसका बाप साथ में नहीं था। उन्होंने बताया कि वह रास्ते में बीमार होकर खत्म हो गया है और उन्होंने उसे दफ्न कर दिया है। जब उस लड़के ने अपने बाप के माल के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि व्यापार में घाटे की वजह से कोई माल भी नहीं बचा। उस लड़के को यकीन था कि वो लोग झूठ बोल रहे हैं लेकिन उसके पास अपनी बात को साबित करने के लिये कोई सुबूत नहीं था। हज़रत अली(र.अ.) ने दोनों आदमियों को बुलवाया और उन्हें मस्जिद के अलग अलग खंभों से दूर दूर बंधवा दिया। फिर उन्होंने मजमे को इकटठा किया और कहा अगर मैं नारे तक़बीर कहूं तो तुम लोग भी दोहराना। फिर वे मजमे के साथ पहले व्यक्ति के पास पहुंचे और कहा कि तुम मुझे बताओ कि उस लड़के का बाप कहां पर और किस बीमारी में मरा। उसे दवा कौन सी दी गयी। मरने के बाद उसे किसने गुस्ल व कफन दिया और कब्र में किसने उतारा।
उस व्यक्ति ने जब वह सारी बातें बतायीं तो हज़रत अली ने ज़ोर से नारे तकबीर लगाया। पूरे मजमे ने उनका अनुसरण किया। फिर हज़रत अली दूसरे व्यक्ति के पास पहुंचे तो उसने नारे की आवाज़ सुनकर समझा कि पहले व्यक्ति ने सच उगल दिया है। नतीजे में उसने रोते गिड़गिड़ाते सच उगल दिया कि दोनों ने मिलकर उस लड़के के बाप का क़त्ल कर दिया है और सारा माल हड़प लिया है। हज़रत अली(र.अ.) ने माल बरामद कराया और उन्हें सज़ा सुनाई ।
इस तरह के बेशुमार फैसले हज़रत अली(र.अ.) ने किये जो काफी मशहूर हुवे । आपसे पहले भी चाहे जिस खलीफा का दौर हो जब भी कोई पेचीदा मसला आता था तो खुलफ़ा ए राश्दीन भी आप से ही मशवरा लेते थे I
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद स.अ.व. ने एक बार माहे रमज़ान की बरकतों और इबादतों के बारे में एक ख़ुत्बा दिया था। उस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने स्थान से उठे और उन्होंने पूछा अये अल्लाह के रसूल इस महीने में सबसे अच्छा क्या कार्य है ? पैग़म्बरे इस्लाम ने उत्तर दिया तक़वा, परहेज़गारी, और हराम कामो से बचना ताकि अल्लाह तुमसे राज़ी हो जाये हज़रत अली को देखकर उन्हें वक्त कुछ और ही मंज़र नज़र आ गया और वे बेहद रंजीदा होकर रोने लगे । हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम के यूँ रंजीदा होने और रोने का कारण पूछा तो पैग़म्बरे इस्लाम ने अली को गले से लगाया और फ़रमाया “अये अली.. तुम पर इस महीने जो ज़ुल्मो सितम किया जायेगा उसे मैं देख रहा हूं कि किस तरह तुम मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे हो और तुम्हारे सिर पर तलवार से हमला किया जा रहा है, जिससे तुम्हारी दाढ़ी ख़नू आलूदा हो गयी है।“
हज़रत अली र.अ. ने बिना परेशान हुवे केवल इतना पूछा अये अल्लाह के रसूल, क्या उस समय मेरा मज़हब और मेरा ईमान सलामत रहेगा ? तब अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया अये अली क़यामत तक जब कभी मेरा नाम लिया जाएगा तो तुम्हारा नाम भी लिया जाएगा ओर तुम हमेशा ही अल्लाह के महबूब रहोगे यहाँ तक की बिना तुम्हारी सिफारिश और इजाज़त के कोई भी जन्नत में दाखिल न हो सकेगा ।
शहादत
ओर फिर वो दिन भी आया जब 40 हिजरी को हज़रत इमाम अली र.अ.मुबारक रमज़ान महीने की 19 तारीख को सुबह की नमाज़ (नमाज़े फज्र) पढ़ने के लिए मस्जिद में तशरीफ़ ले गये तो इब्ने मुल्जिम जो की मस्जिद के एक स्तंभ के पीछे विष में डूबी तलवार लिए पहले से छिपा था उसने हज़रत अली को नमाज़ अदा करते वक्त जैसे ही आपने सजदे से सिर उठाया तो उसने तलवार से सिर पर वार कर दिया। मस्जिद की ज़मीन ख़ून से लाल हो गयी और लोगो ने हज़रत अली के चेहरे पर ख़ुशी देखि और उन्हें ये कहते सुना, “काबे के रब की कसम. मैं सफल हो गया “ और कुर्बान जाइए मौला अली के सब्र पर, अली अपने बिछौने पर लेटे हुए हैं। इमाम ए हसन और हुसैन और सभी के चेहरे दुःख और आंसूओं में डूबे हुए हैं, वे दूध का प्याला लिए अपने वालिद के पास खड़े होकर रो रहे है, कि तभी इब्ने मुल्जिम को रस्सियों में बांध कर लाया जाता है, जिसे देख कर आप अपने बेटो से कहते हैं कि मेरे बच्चो इसके हाथ खुलवा दो, इसे तकलीफ हो रही है, और ज़रा देखो ये प्यासा भी है, पहले इसकी प्यास बुझा दो, फिर आपने अपने लिए लाया दूध का प्याला उसको दिया। और फिर उससे पूछा क्या मैं तेरा बुरा इमाम था ? आपके इस प्रश्न को सुनकर उस क्रूर हत्यारे की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगते है । फिर आपने फ़रमाया जितना इसका जुर्म है, उससे ज्यादा सजा इसे मत देना “ और माहे रमज़ान की 21 तारीख को करीब 63 साल की उम्र में आपने इस दुनिया ए फ़ानी से हमेशा हमेशा के लिए रुख्सत होकर आखरी बार कलमा पढ़ते हुवे नबी ए करिमैन (स.अ.व.) को याद किया, और हमेशा हमेशा के लिए दुनिया वालो की नजरो से पर्दा कर लिया ( इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेउन) i हज़रत इमाम हसन (र.अ.) ने अपने वालिदे बुज़ुर्गवार हज़रत अली (र.अ.) की शहादत के बाद फ़रमाया: बेशक तुम्हारे दरमियान से ऐसी शख्सीयत उठ गयी है जिसके इल्म तक साबेक़ीन (गुज़िश्ता) और लाहेक़ीन (आईन्दा आने वाले) नही पहुच सकते। (मुसनद अहमद जिल्द 1 पेज 328)
हज़रत अली र.अ. का रओज़े मुबारक (मजारे अक्दस)
आपकी शहादत के बाद परिस्थितियों बेहद ख़राब थी, आपके दुश्मन कब्र खोदकर आपके जिस्म मुबारक को नष्ट भी कर सकते थे लिहाज़ा बहोत ही ख़ामोशी से आपको दफ़न किया गया जिसके बारे में सिर्फ आपके करीबी लोगो और रिश्तेदारों को ही मालूम था और परिस्तिथिया अनुकूल होने पर ख़लीफ़ा हारून रशीद के समय मे इस बात को ज़ाहिर किया गया कि हज़रत इमाम अली की मज़ार ए मुबारक शहरे नजफ़ में है । खबर सुनते ही लोग आपकी मजारे अक्दस पर आने लगे, फिर आपकी मज़ार (समाधि) का भव्य निर्माण कराया गया और उस वक्त भी और आज भी इमाम अली के रौज़ ए मुबारक पर लाखो लोग हाज़िरी देकर मौला अली को याद किया करते है, अल्लाह से उनके वसीले से जो भी दुवाये की जाए वो कभी रद्द नहीं होती है, उन्हें मुश्किल कुशा कहा जाता है, हर मुश्किल परेशानिया उनके नाम लेने मात्र से ही दूर हो जाती है I
आपने बहोत सी किताबे लिखी थी, कुरआन ए करीम को लिखा, बहोत सी नसीहते फरमाई जिसमे आपने बतलाया था की “वतन से मोहब्बत ईमान की निशानी है “ और सभी इंसान या तो तुम्हारे धर्म भाई हैं या फिर इंसानियत के रिश्ते से भाई हैं |
रसूले अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत अली के बारे में आपने फ़रमाया था “ मेरे बाद मेरी उम्मत में सबसे बड़े आलिम अली बिन अबी तालिब (र.अ.) हैं। साथ ही ये भी फ़रमाया था “ मैं शहरे इल्म हूँ तो अली उसका दरवाज़ा, जो शख्स भी मेरे इल्म का तालिब है उसे दरवाज़े से दाख़िल होना चाहिये। आपने अली से और अली के खानदान यानि अहले बैत से मोहब्बत करना ईमान की निशानी बताया था, और उनसे बुग्ज़ या अदावत करना, ईमान से हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाना बतलाया है i अल्लाह हम सभी को हज़रत अली, उनके घराने से तमाम अहले बैत से मोहब्बत करने वाला बनाये, उनके सदके वो तुफैल हमारी सारी मुश्किल परेशानिया दूर करे..आमीन
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तुरा दामन गिरफ्तम या शेर यजदा,बलाए बूद रा नाबूद कर्दा..
21 रमज़ान :-यौमे शहादत -मौला ए कायनात हज़रत अली करमल्लाहू तआला वजहुल करीम-
शाहे नजफ़, हैदर ए कर्रार - शेरे खुदा, मौला अली मुश्किल कुशा इमाम ए अली मुर्तुजा करमल्लाहू ताला वजहुल करीम जिनकी बहादुरी का लोहा सभी कल भी मानते थे और आज भी मानते है I उनके बारे में कुछ भी कहना सूरज के आगे दिया दिखलाने जैसा ही है , सारी कायनात मिलकर भी अगर हज़रत अली की अजमतों को बयान करना चाहे तो भी मुकम्मल शान ए अली बयाँ नहीं हो सकती है I
पैदाइश काबे शरीफ में
आप अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दामाद, जन्नते खातून हज़रते फातिमा के शौहर, और इमामे हसन ओ हुसैन के वालिद है I जिनकी पैदाइश मक्का ए मोअज्ज़मा में पवित्र काबे शरीफ़ में हुवी हो, ओर शहादत मस्जिद में हुवी हो. उस इमाम ए अली र.अ.की अज़मत का क्या कहना I जब आप पैदा होने वाले थे तो अल्लाह की कुदरत से काबे की दीवार का वो हिस्सा जिसे आज रुक्न ऐ यमनी कहते हैं दो हिस्से मैं बट गया जिसमे आपकी वालदा काबे के अंदर दाखिल हुवी और इस तरह आप 17 मार्च सन 600 , यानि 13 रज्जब जुमे को काबे शरीफ में पैदा हुवे | वो काबा जिसे अल्लाह का घर कहा गया है, | वो काबा जिसका तवाफ़ सारी दुनिया करती है वो काबा, जिसके सिम्त सभी मुसलमान नमाज़ पढ़ते है, उस मुबारक जगह पर न उनसे पहले कोई पैदा हुवा है, और न ही कभी हो सकेगा I
आप नबी ए करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ सारी ज़िन्दगी उनका हमसाया बनकर रहे I पैदा होने पर आपने तब तक अपनी आँखे नहीं खोली, जब तक नबी ए करीम आपके सामने नहीं आये, आपकी तरबियत व तालीम भी रसूले अकरम के घर पर ही, उनकी छत्र छाया में हुई I ईमान लाने वाले मर्दों में बच्चो में सबसे पहले हज़रत अली ही है, तो वही बड़ो में हज़रत अबू बक्र सिद्दीक र.अ. और औरतो में माँ साहेबा हज़रत ख़दीजा र.अ. है I नबी ए करीम हुजुर (स.अ.व.) नमाज़ के लिये मस्जिदुल हराम (ख़ान ए काबा) में जब भी जाते थे, तो उनके पीछे पीछे हज़रात अली (र.अ.) और माँ साहेबा जनाबे ख़दीजा र.अ.भी साथ होते और नमाज़ पढ़ते थे, जबकि इन तीन अफ़राद के अलावा कोई नमाज़ नही पढ़ता था।
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने खुद हजरत अली के बारे में फ़रमाया था की : “मैं और अली बिन अबी तालिब, आदम की ख़िलक़त से चार हज़ार साल पहले ख़ुदा के नज़दीक एक नूर थे, जिस वक़्त ख़ुदावंदे आलम ने (जनाबे) आदम को ख़ल्क़ फ़रमाया, उस नूर के दो हिस्से किये, जिसका एक हिस्सा मैं हूँ और दूसरा हिस्सा अली बिन अबी तालिब (अलैहिस्सलाम) हैं। (तज़किरतुल ख़वास पेज 46)
कुराने करीम में ज़िक्र
अल्लाह ने कुराने करीम में भी बहोत से मक़ाम पर आपके बारे में बतलाया है,
लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिये अपनी जान तक बेच डालते हैं और अल्लाह ऐसे वंदों पर बड़ा ही शफ़क़त वाला और मेहरबान है।(सूरा बक़रा आयत 207) यह आयते शरीफ़ा उस वक़्त नाज़िल हुई जब पैग़म्बरे अकरम (स.अ.व.) अबू बक्र के साथ मुशरेकीने मक्का के हमलों से बच कर ग़ार में पनाह लिये हुए थे और हज़रत अली (अ) पैग़म्बरे अकरम (स.अ.व.) के बिस्तर पर सोए हुए थे।इसी तरह एक और आयत में कहा गया है
“ आप कह दीजिए कि मैं तुम से इस तहलीग़े रिसालत का कोई अज्र नही चाहता सिवाए इसके कि मेरे क़राबत दारों से मुहब्बत करो।(सूरा शूरा आयत 23)जब पैग़म्बर रसूले अकरम (स.अ.व.) पर यह आयत नाज़िल हुई तो इब्ने अब्बास ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह आपके वह रिश्तेदार कौन है जिनकी मुहब्बत हम लोगों पर वाजिब है? तो आप हज़रत (स.अ.व.) ने फ़रमाया: मेरे वो रिश्तेदार है, अली, फ़ातेमा और उनके दोनो बेटे,।
मेहनत, मशक्कत वो सखावत
आप इस्लाम के चौथे खलीफा हुवे, और आपने 30 सालो तक इमामत की, और सबसे पहले इमाम हुवे, आपके बाद भी आपके घराने से भी सभी इमाम हुवे I हज़रत अली इल्म के साथ साथ बहादुरी का पैकर थे तो वही दूसरी ओर आपको हमेशा मेहनत, मशक्कत करना भी पसंद था i हजरत अली का शौक था बाग़ों को लगाना व कुएं खोदना। यहाँ तक कि जब उन्होंने इस्लामी खलीफा का ओहदा संभाला तो भी बागों व खेतों में खुद भी मेहनत करने का उनका अमल जारी रहा। उन्होंने अपने दम पर अनेक रेगिस्तानी इलाकों को नखिलस्तान में बदल दिया था। मदीने के आसपास उनके लगाये गये बाग़ात आज भी देखे जा सकते हैं। उनकी सखावत को कौन नहीं जानता है, लिहाज़ा इससे होने वाली आमदनी को वे गरीबो में बाट दिया करते थे, आपने अपने पास कभी कुछ जमा करके नहीं रखा, और आप जमाखोर व्यापारियों को भी पसंद नहीं करते थे, यहाँ तक की आप अपने बेटो को भी यही तालीम दिया करते थे की मेहनत करो और कभी खजांची बनने की कोशिश मत करना I ये हजरत अली ही थे, जिनका फरमान था की “मजदूरों को उसकी मजदूरी उसका पसीना सूखने से पहले अदा कर देनी चाहिए “I
हज़रत अली र.अ.की शुजाअत (बहादुरी)
इतिहासकार भी इस बात को मानते है की हज़रत अली जैसा बहादुर उनसे पहले न कोई हुवा था न आइन्दा कभी हो सकेगा I खैबर की जंग में जिस किले को फ़तेह करना मुश्किल समझा जाता था, उस किले का भारी भरकम दरवाज़ा एक हाथ से उखाड़ने का कारनामा जिसने किया वो ज़ात है अली और इसका वर्णन मशहूर खोजकर्ता “रिप्ले” ने अपनी किताब 'बिलीव इट आर नाट' में भी किया है। जिसमे उसने कहा है, विश्वास नहीं होता की कोई इन्सान इतना ताकतवर भी हो सकता है, जो न सिर्फ इतना मज़बूत दरवाज़ा उखाड़ सकता है, बल्कि उसे ढाल बनाकर उससे दुश्मनों को नेस्तनाबूद भी कर सकता है I इस्लाम की सबसे पहली जंग, जंगे बद्र में भी बहादुरी से जंग कर दुश्मनों को शिकस्त करने वाली ज़ात का नाम है अली जिसमें एक तरफ सिर्फ 313 मुसलमान थे तो दूसरी तरफ 1000 या उससे भी ज्यादा कुफ्फारे मक्का, जिसमे दुश्मनों के 70 लोग मारे गए और उनमे से 36 लोगो को अकेले मार गिराने वाली ज़ात का नाम है अली ,इसी तरह जंगे ओहद में जबकि चारों ओर से मुसलमानों पर हमला कर दिया था, जिसका परिणाम यह हुआ कि पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा हज़रत हम्ज़ा सहित बहुत से मुसलमान योद्धा शहीद हो गये थे । उस युद्ध में हज़रत अली और कुछ मुसलमानों ने पैग़म्बरे इस्लाम की रक्षा की और उन्हें दुश्मनों के हमलों से सुरक्षित रखा । इस जंग में आसमान में हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने कहा था की जंग में अली के अलावा कोई जवान नहीं है और ज़ुलफ़ेक़ार के सिवा कोई तलवार नहीं है I इस जंग के बाद हज़रत अली ने जब यह देखा कि लगभग 70 मुसलमान शहीद हो गये हैं और वे शहीद नहीं हुए तो वे बेहद रंजीदा हो गए जबकि वे बहुत घायल हो चुके थे। पैग़म्बरे इस्लाम जब इस बात को समझ गये तो उन्होंने फरमाया अये अली “ अभी वक्त नहीं आया है, बाद में तुम्हारा नाम भी शहीदो में ही शुमार होगा ।“
हज़रत अली र.अ.का इल्म
मौला ए कायनात हज़रत अली करमल्लाहू ताला वजहहुल करीम के ज़िन्दगी का एक और अहेम हिस्सा उनका इल्म है, सभी आपके इल्म का लोहा मानते है I जो की उनकी लिखी किताबो में आज भी महफूज़ है, जिनमें से कुछ किताबो के नाम इस प्रकार हैं
1. किताबे अली - इसमें कुरआन के साठ उलूम का जि़क्र है।
2. जफ्रो जामा (इस्लामिक न्यूमरोलोजी पर आधारित)- इसके बारे में कहा जाता है कि इसमें गणितीय फार्मूलों के द्वारा कुरान मजीद का असली मतलब बताया गया है. तथा क़यामत तक की समस्त घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है. यह किताब अब अप्राप्य है.
3. किताब फी अब्वाबुल फिक़ा
4. किताब फी ज़कातुल्नाम
5. सहीफे अलफरायज़
इसके अलावा हज़रत अली के खुत्बों के दो मशहूर संग्रह भी उपलब्ध हैं। उनमें से एक का नाम नहजुल बलाग़ा व दूसरे का नाम नहजुल असरार है। इन खुत्बों में आपने दीन के साथ दुनियावी बाते भी बतलाई है यहाँ तक की आपने बहुत से वैज्ञानिक तथ्यों के बारे में भी बतलाया है. और बहोत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया. जिनमे से कुछ इस तरह से है
आपने आज से 1400 साल पहले जो बाते बतलाई थी बाद में वही बाते साइंस की खोज में सहायक हुवी, और तमाम वैज्ञानिको ने उन्हें एक महान वैज्ञानिक माना I
एक बार एक प्रश्नकर्ता ने उनसे सूर्य की पृथ्वी से दूरी के बारे में पूछा तो आपने जवाब में बताया कि एक अरबी घोड़ा पांच सौ सालों में जितनी दूरी तय करेगा वही सूर्य की पृथ्वी से दूरी है. उनके इस कथन को बाद में वैज्ञानिकों ने पूरी तरह सही होना पाया क्योकि जब यह दूरी नापी तो 149600000 किलोमीटर पाई गई I अरबी घोडे की औसत चाल 35 किमी/घंटा होती है और इससे यही दूरी निकलती है I वैज्ञानिको को हैरत है की इतनी सटीक जानकारी किसी इंसान को आज से 1400 सौ साल पहले कैसे हो सकती है I माना जाता है की जीवों में कोशिका (cell) की खोज 17 वीं शताब्दी में लीवेन हुक ने की. लेकिन नहजुल बलाग का निम्न कथन ज़ाहिर करता है कि हज़रत अली को कोशिका की जानकारी बहोत पहले से थी. ''जिस्म के हर हिस्से में बहुत से अंग होते हैं. जिनकी रचना उपयुक्त और उपयोगी है. सभी को ज़रूरतें पूरी करने वाले शरीर दिए गए हैं. सभी को रूहानी ताक़त हासिल करने के लिये दिल दिये गये हैं. सभी को काम सौंपे गए हैं और उनको एक छोटी सी उम्र दी गई है. ये अंग पैदा होते हैं और अपनी उम्र पूरी करने के बाद मर जाते हैं. (खुत्बा-81) स्पष्ट है कि 'अंग से हजरत अली का मतलब कोशिका ही था.' आपकी इस दलील से वैज्ञानिक आपके इल्म के कायल हो गए I अगर हम बात करे आइन्स्टीन के सापेक्षकता के सिद्धांत की तो वो भी हजरत अली ने पहले ही बतला दिया था I इसी तरह के साइंस की सैकड़ो थ्योरी है जो हज़रत अली की बतलाई हुई है चाहे वो मेडिकल साइंस से सम्बंधित हो या फिर मैथ्स,यानि गणित की हो सभी पर आपके जवाब इतने सटीक है की उन पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है I चिकित्सा का बुनियादी उसूल बताते हुए आपने कहा था , ''बीमारी में जब तक हिम्मत साथ दे, चलते फिरते रहो i दूर दराज़ से लोग उनसे दीनी – दुनियावी हर तरह के पेचीदे मसले पूछने आया करते थे जिसका वो हमेशा सटीक और तार्किक जवाब दिया करते थे,." इल्म(ज्ञान) प्राप्त करने के लिए हजरत अली ने खास तौर से जोर दिया, वे कहते थे, '' इल्म की तरफ बढ़ो, इससे पहले कि उसका हरा भरा मैदान खुश्क हो जाए."
हज़रत अली र.अ.का न्याय
एक अन्य मशहूर फैसले में एक लड़का हज़रत अली(र.अ.) के पास आया जिसका बाप दो दोस्तों के साथ बिज़नेस के सिलसिले में गया था। वे दोनों जब लौटे तो उसका बाप साथ में नहीं था। उन्होंने बताया कि वह रास्ते में बीमार होकर खत्म हो गया है और उन्होंने उसे दफ्न कर दिया है। जब उस लड़के ने अपने बाप के माल के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि व्यापार में घाटे की वजह से कोई माल भी नहीं बचा। उस लड़के को यकीन था कि वो लोग झूठ बोल रहे हैं लेकिन उसके पास अपनी बात को साबित करने के लिये कोई सुबूत नहीं था। हज़रत अली(र.अ.) ने दोनों आदमियों को बुलवाया और उन्हें मस्जिद के अलग अलग खंभों से दूर दूर बंधवा दिया। फिर उन्होंने मजमे को इकटठा किया और कहा अगर मैं नारे तक़बीर कहूं तो तुम लोग भी दोहराना। फिर वे मजमे के साथ पहले व्यक्ति के पास पहुंचे और कहा कि तुम मुझे बताओ कि उस लड़के का बाप कहां पर और किस बीमारी में मरा। उसे दवा कौन सी दी गयी। मरने के बाद उसे किसने गुस्ल व कफन दिया और कब्र में किसने उतारा।
उस व्यक्ति ने जब वह सारी बातें बतायीं तो हज़रत अली ने ज़ोर से नारे तकबीर लगाया। पूरे मजमे ने उनका अनुसरण किया। फिर हज़रत अली दूसरे व्यक्ति के पास पहुंचे तो उसने नारे की आवाज़ सुनकर समझा कि पहले व्यक्ति ने सच उगल दिया है। नतीजे में उसने रोते गिड़गिड़ाते सच उगल दिया कि दोनों ने मिलकर उस लड़के के बाप का क़त्ल कर दिया है और सारा माल हड़प लिया है। हज़रत अली(र.अ.) ने माल बरामद कराया और उन्हें सज़ा सुनाई ।
इस तरह के बेशुमार फैसले हज़रत अली(र.अ.) ने किये जो काफी मशहूर हुवे । आपसे पहले भी चाहे जिस खलीफा का दौर हो जब भी कोई पेचीदा मसला आता था तो खुलफ़ा ए राश्दीन भी आप से ही मशवरा लेते थे I
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद स.अ.व. ने एक बार माहे रमज़ान की बरकतों और इबादतों के बारे में एक ख़ुत्बा दिया था। उस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने स्थान से उठे और उन्होंने पूछा अये अल्लाह के रसूल इस महीने में सबसे अच्छा क्या कार्य है ? पैग़म्बरे इस्लाम ने उत्तर दिया तक़वा, परहेज़गारी, और हराम कामो से बचना ताकि अल्लाह तुमसे राज़ी हो जाये हज़रत अली को देखकर उन्हें वक्त कुछ और ही मंज़र नज़र आ गया और वे बेहद रंजीदा होकर रोने लगे । हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम के यूँ रंजीदा होने और रोने का कारण पूछा तो पैग़म्बरे इस्लाम ने अली को गले से लगाया और फ़रमाया “अये अली.. तुम पर इस महीने जो ज़ुल्मो सितम किया जायेगा उसे मैं देख रहा हूं कि किस तरह तुम मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे हो और तुम्हारे सिर पर तलवार से हमला किया जा रहा है, जिससे तुम्हारी दाढ़ी ख़नू आलूदा हो गयी है।“
हज़रत अली र.अ. ने बिना परेशान हुवे केवल इतना पूछा अये अल्लाह के रसूल, क्या उस समय मेरा मज़हब और मेरा ईमान सलामत रहेगा ? तब अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया अये अली क़यामत तक जब कभी मेरा नाम लिया जाएगा तो तुम्हारा नाम भी लिया जाएगा ओर तुम हमेशा ही अल्लाह के महबूब रहोगे यहाँ तक की बिना तुम्हारी सिफारिश और इजाज़त के कोई भी जन्नत में दाखिल न हो सकेगा ।
शहादत
ओर फिर वो दिन भी आया जब 40 हिजरी को हज़रत इमाम अली र.अ.मुबारक रमज़ान महीने की 19 तारीख को सुबह की नमाज़ (नमाज़े फज्र) पढ़ने के लिए मस्जिद में तशरीफ़ ले गये तो इब्ने मुल्जिम जो की मस्जिद के एक स्तंभ के पीछे विष में डूबी तलवार लिए पहले से छिपा था उसने हज़रत अली को नमाज़ अदा करते वक्त जैसे ही आपने सजदे से सिर उठाया तो उसने तलवार से सिर पर वार कर दिया। मस्जिद की ज़मीन ख़ून से लाल हो गयी और लोगो ने हज़रत अली के चेहरे पर ख़ुशी देखि और उन्हें ये कहते सुना, “काबे के रब की कसम. मैं सफल हो गया “ और कुर्बान जाइए मौला अली के सब्र पर, अली अपने बिछौने पर लेटे हुए हैं। इमाम ए हसन और हुसैन और सभी के चेहरे दुःख और आंसूओं में डूबे हुए हैं, वे दूध का प्याला लिए अपने वालिद के पास खड़े होकर रो रहे है, कि तभी इब्ने मुल्जिम को रस्सियों में बांध कर लाया जाता है, जिसे देख कर आप अपने बेटो से कहते हैं कि मेरे बच्चो इसके हाथ खुलवा दो, इसे तकलीफ हो रही है, और ज़रा देखो ये प्यासा भी है, पहले इसकी प्यास बुझा दो, फिर आपने अपने लिए लाया दूध का प्याला उसको दिया। और फिर उससे पूछा क्या मैं तेरा बुरा इमाम था ? आपके इस प्रश्न को सुनकर उस क्रूर हत्यारे की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगते है । फिर आपने फ़रमाया जितना इसका जुर्म है, उससे ज्यादा सजा इसे मत देना “ और माहे रमज़ान की 21 तारीख को करीब 63 साल की उम्र में आपने इस दुनिया ए फ़ानी से हमेशा हमेशा के लिए रुख्सत होकर आखरी बार कलमा पढ़ते हुवे नबी ए करिमैन (स.अ.व.) को याद किया, और हमेशा हमेशा के लिए दुनिया वालो की नजरो से पर्दा कर लिया ( इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेउन) i हज़रत इमाम हसन (र.अ.) ने अपने वालिदे बुज़ुर्गवार हज़रत अली (र.अ.) की शहादत के बाद फ़रमाया: बेशक तुम्हारे दरमियान से ऐसी शख्सीयत उठ गयी है जिसके इल्म तक साबेक़ीन (गुज़िश्ता) और लाहेक़ीन (आईन्दा आने वाले) नही पहुच सकते। (मुसनद अहमद जिल्द 1 पेज 328)
हज़रत अली र.अ. का रओज़े मुबारक (मजारे अक्दस)
आपकी शहादत के बाद परिस्थितियों बेहद ख़राब थी, आपके दुश्मन कब्र खोदकर आपके जिस्म मुबारक को नष्ट भी कर सकते थे लिहाज़ा बहोत ही ख़ामोशी से आपको दफ़न किया गया जिसके बारे में सिर्फ आपके करीबी लोगो और रिश्तेदारों को ही मालूम था और परिस्तिथिया अनुकूल होने पर ख़लीफ़ा हारून रशीद के समय मे इस बात को ज़ाहिर किया गया कि हज़रत इमाम अली की मज़ार ए मुबारक शहरे नजफ़ में है । खबर सुनते ही लोग आपकी मजारे अक्दस पर आने लगे, फिर आपकी मज़ार (समाधि) का भव्य निर्माण कराया गया और उस वक्त भी और आज भी इमाम अली के रौज़ ए मुबारक पर लाखो लोग हाज़िरी देकर मौला अली को याद किया करते है, अल्लाह से उनके वसीले से जो भी दुवाये की जाए वो कभी रद्द नहीं होती है, उन्हें मुश्किल कुशा कहा जाता है, हर मुश्किल परेशानिया उनके नाम लेने मात्र से ही दूर हो जाती है I
आपने बहोत सी किताबे लिखी थी, कुरआन ए करीम को लिखा, बहोत सी नसीहते फरमाई जिसमे आपने बतलाया था की “वतन से मोहब्बत ईमान की निशानी है “ और सभी इंसान या तो तुम्हारे धर्म भाई हैं या फिर इंसानियत के रिश्ते से भाई हैं |
रसूले अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत अली के बारे में आपने फ़रमाया था “ मेरे बाद मेरी उम्मत में सबसे बड़े आलिम अली बिन अबी तालिब (र.अ.) हैं। साथ ही ये भी फ़रमाया था “ मैं शहरे इल्म हूँ तो अली उसका दरवाज़ा, जो शख्स भी मेरे इल्म का तालिब है उसे दरवाज़े से दाख़िल होना चाहिये। आपने अली से और अली के खानदान यानि अहले बैत से मोहब्बत करना ईमान की निशानी बताया था, और उनसे बुग्ज़ या अदावत करना, ईमान से हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाना बतलाया है i अल्लाह हम सभी को हज़रत अली, उनके घराने से तमाम अहले बैत से मोहब्बत करने वाला बनाये, उनके सदके वो तुफैल हमारी सारी मुश्किल परेशानिया दूर करे..आमीन
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