‘उसमें वो लोग हैं जो खूब पाक होना चाहते हैं और पाक (साफ सूथरे) लोग अल्लाह को प्यारे हैं।’ (क़ुरान 9:108) ‘अल्लाह नहीं चाहता कि तुम पर कुछ तंगी रखे, हां ये चाहता है कि तुम्हें साफ सूथरा (पाक) कर दे।’ (क़ुरान 5:6) ‘पाकीज़गी आधा ईमान है।’ (तिरमिज़ी 3530) ‘दीन की बुनियाद पाकीज़गी पर है।’ (अश-शिफा 1:61, इहयाउल उलूम 396) पाकी के मायने हैं- खुद को बुराईयों और गंदगी से पाक रखना। पाकी दो तरह की होती है- एक ज़ाहिरी और दूसरा बातिनी। दोनों पाकी ज़रूरी है। बातिनी यानी दिल की पाकी भी और ज़ाहिरी यानी जिस्म की पाकी भी। किसी भी तरह की इबादत व अमल के लिए जिस्म का पाक होना ज़रूरी होता है। साथ जगह और कपड़े भी पाक हो। गुस्ल पाकी हासिल करने के लिए गुस्ल करना पड़ता है। गुस्ल करना और सिर्फ नहाने में फ़र्क होता है। गुस्ल करने का ये तरीक़ा है- गुस्ल करने की नियत करें गंदगी से तमाम जिस्म को पाक कर लें वजू करें कुल्ली करें व अच्छी तरह मुंह साफ करें नाक में पानी डालें पूरे बदन में तीन बार पानी बहाएं, इस तरह कि कोई हिस्सा बाकी न रहे साफ व पाक कपड़े पहनें। वजू गुस्ल करने से पाक तो हो जाते हैं, लेकिन किसी भी इबाद